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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


एक शंका- अदालतों का न्याय कहने ही को है; जिनके पास बने हुए गवाह और दाँवपेंच खेले हुए वकील होते हैं, उसी की जीत होती है, झूठे-सच्चे की परख कौन करता है? हाँ, हैरानी अलबत्ता होती है।

भगत- कहा जाता है कि विदेशी चीजों का व्यवहार मत करो। यह गरीबों के साथ घोर अन्याय है। हमको बाजार में जो चीज सस्ती और अच्छी मिले, वह लेनी चाहिए। चाहे, स्वदेशी हो या विदेशी। हमारा पैसा सेंत में नहीं आता कि उसे रद्दी-भद्दी स्वदेशी चीजों पर फेकें।

एक शंका- अपने देश में तो रहता है, दूसरों के हाथ में नहीं जाता।

दूसरी शंका- अपने घर में अच्छा खाना न मिले, तो क्या विजातियों के घर का अच्छा भोजन खाने लगेंगे?

भगत- लोग कहते हैं, लड़कों को सरकारी मदरसों में मत भेजो। सरकारी मदरसों में न पढ़ते, तो आज हमारे भाई बड़ी-बड़ी नौकरियाँ कैसे पाते, बड़े-बड़े कारखाने कैसे बना लेते? बिना नई विद्या पढ़े अब संसार में निबाह नहीं हो सकता, पुरानी विद्या पढ़कर पत्रा देखने और कथा बाँचने के सिवा और क्या आता है? राज-काज क्या पट्टी-पोथी बाँचनेवाले लोग करेंगे?

एक शंका- हमें राज-काज न चाहिए। हम अपनी ही खेती-बारी में मगन है, किसी के गुलाम तो नहीं।

दूसरी शंका- जो विद्या घमंडी बना दे, उससे मूर्ख ही अच्छा। यही नई विद्या पढ़कर तो लोग सूट-बूट, घड़ी-छड़ी, हैट-कैट लगाने लगते हैं और अपने शौक के पीछे देश का धन विदेशियों की जेब में भरते हैं। ये देश के द्रोही हैं।

भगत- गाँजा-शराब की ओर आजकल लोगों की कड़ी निगाह है। नशा बुरी लत है, इसे सब जानते हैं। सरकार को नशे की दूकानों से करोड़ों रुपये साल की आमदनी होती है। अगर दूकानों में न जाने से लोगों की नशे की लत छूट जाय, तो बड़ी अच्छी बात है। वह दूकान पर न जायगा, तो चोरी-छिपे किसी-न-किसी तरह दूने-चौगुने दाम देकर, सजा काटने पर तैयार होकर, अपनी लत पूरी करेगा। तो ऐसा काम क्यों करो कि सरकार का नुकसान अलग हो और गरीब रैयत का नुकसान अलग हो। फिर किसी-किसी को नशा खाने से फायदा होता है। मैं ही एक दिन अफीम न खाऊँ, तो गाँठों में दर्द होने लगे, दम उखड़ जाय और सरदी पकड़ ले।

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