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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


आठवें दिन उन्हें खबर मिली कि इस इलाके में मादक वस्तुओं का निषेध करने के लिए किसानों की एक पंचायत होनेवाली है, उपदेश होंगे, भजन गाये जाएंगे और लोगों से मदत्याग की प्रतिज्ञा ली जाएगी। हरिविलास मानते थे कि नशे के व्यसन से देश का सर्वनाश हुआ जाता है, यहाँ तक कि नीची श्रेणी के मनुष्यों को तो इसने अपना गुलाम बना लिया है, अतएव इसका बहिष्कार सर्वथा स्तुत्य है। पहले एक बार वह मादक वस्तु-विभाग में रह चुके थे, और उनके समय में इस विभाग की आमदनी खूब बढ़ गई थी। उस वक्त इस प्रश्न को वह अधिकारियों की आँख से देखते थे। टेम्परेंस के उपदेशकों को सरकार का विरोधी समझते थे, लेकिन इस लालफीते वाले आज्ञापत्र ने उनकी काया ही पलट दी थी। सरकारी प्रजा-हित नीति पर उन्हें लेशमात्र भी विश्वास न रहा था। इस आज्ञा के अनुसार उनका कर्त्तव्य था कि जाकर इस पंचायत की कार्रवाइयों को देखें और यदि उस त्याग के लिए किसी के साथ सख्ती या तिरस्कार करते पाएँ तो तुरंत उसे बंद कर दें। मनुष्योचित और पदोचित कर्त्तव्यों में घोर संग्राम हो रहा था। इसी बीच में हल्के का दारोगा कई सशस्त्र कांसटेबलों और चौकीदारों के साथ आ पहुँचा और सलाम करने को हाज़िर हुआ। हरिविलास उसकी सूरत देखते ही लाल हो गए, जैसे फूस में आग लग जाए। कठोर स्वर से बोले- ''आप यहाँ कैसे आए?''

दारोगा- ''हजूर को इस पंचायत की इत्तिला तो मिली ही होगी। वहीं फ़साद होने का खौफ़ है। इसलिए हजूर की खिदमत में हाज़िर हुआ हूँ।''

हरिविलास- ''मुझे इसका कोई भय नहीं है। हाँ, आपके जाने से फ़साद हो सकता है।

दारोगा ने विस्मित होकर कहा- ''मेरे जाने से!''

हरिविलास- ''हाँ आपके जाने से। रिआया को आपस में लड़ाकर आप अपना उल्लू सीधा करते हैं। मैं आपके हथकंडों से खूब वाक़िफ हूँ। आपको मेरे साथ चलने की जरूरत नहीं।''

दारोगा- ''सुपरिंटेंडेंट साहब बहादुर का सख्त हुक्म है कि इस मौक़े पर हजूर की खिदमत में हाजिर रहूँ।''

हरिविलास- ''तो क्या आप मुझे नज़रबंद करने आए हैं?''

दारोगा ने भयभीत होकर कहा- ''हजूर की शान में मुझसे ऐसी... ''

हरिविलास- ''मैं तुम्हारे साहब का गुलाम नहीं हूँ।''

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