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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


बेचू ने मुरौवत में पड़ कर कहा- मुंशी जी, आपके लिए किसी बात से इनकार थोड़े ही है। लेकिन बात यह है कि आजकल लग्न की तेजी से सभी ग्राहक अपने-अपने कपड़ों की जल्दी मचा रहे हैं, दिन में दो-तीन बेर आदमी भेजते हैं। ऐसा न हो, इधर आपको कपड़े दे दूँ, उधर कोई जल्दी मचाने लगे।

मुंशीजी- अजी, दो-तीन दिन के लिए टालना कौन बड़ा काम है। तुम चाहो तो हफ्तों टाल सकते हो, अभी भट्ठी नहीं दी, अभी इस्तरी नहीं हुई, घाट बंद है। तुम्हारे पास बहानों की क्या कमी है। पड़ोस में रह कर मेरी खातिर से इतना भी न करोगे?

बेचू- नहीं मुंशी जी, आपके लिए जान हाजिर है। चलिए कपड़े पसंद कर लीजिए, तो मैं उन पर और एक बेर इस्तरी करके ठीक कर दूँ। यही न होगा, गाहकों की घुड़कियाँ खानी पड़ेंगी। दो-चार ग्राहक टूट ही जायँगे तो कौन गम है।

मुंशी दाताराम ठाट से बारात में पहुँचे। यहाँ उनके बनारसी साफे, रेशमी अचकन और रेशमी चादर ने ऐसा रंग जमाया कि लोग समझने लगे, यह कोई बड़े रईस हैं। बेचू भी उनके साथ हो लिया था। मुंशी जी उसकी बड़ी खातिर कर रहे थे। उसे एक बोतल शराब दिला दी, भोजन करने गये तो एक पत्तल उसके वास्ते भी लेते आये। बेचू के बदले उसे चौधरी कह कर पुकारते थे। यह सारा ठाट-बाट उसी की बदौलत तो था।

आधी रात गुजर चुकी थी। महफिल उठ गयी थी। लोग सोने की तैयारियाँ कर रहे थे। बेचू मुंशी जी की चारपाई के पास एक चदरा ओढ़े पड़ा था। मुंशी जी ने कपड़े उतारे और बड़ी सावधानी से अलगनी पर लटका दिये। हुक्का तैयार था। लेटकर पीने लगे कि अकस्मात् साजिन्दों में से एक अताई आ कर सामने खड़ा हो गया और बोला-कहिए हजरत यह अचकन और साफा आपने कहाँ पाया?

मुंशी जी ने उसकी ओर सशंक नेत्रों से देखकर कहा- इसका क्या मतलब?

अताई- इसका मतलब यह है, यह दोनों चीज़ें मेरी हैं।

मुंशीजी ने दुस्साहसपूर्ण भाव से कहा- क्या तुम्हारे खयाल में रेशमी अचकन और साफा तुम्हारे सिवाय और किसी के पास हो ही नहीं सकता।

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