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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


महाराजा रणजीतसिंह श्यामा के तर्ज व अन्दाज को गौर से देख रहे थे। उनकी तेज निगाहें उसके दिल में पहुँचने की कोशिश कर रही थीं। लोग अचम्भे में पड़े हुए थे कि क्यों उनकी जबान से तारीफ और कद्रदानी की एक बात भी न निकली। वह खुश न थे, वह ख्याल में डूबे हुए थे। उन्हें हुलिये से साफ पता चल रहा था कि यह औरत हरगिज अपनी अदाओं को बेचनेवाली औरत नहीं है। यकायक वह उठ खडे हुए और बोले- श्यामा, बृहस्पति को मैं फिर तुम्हारा गाना सुनूँगा।

वृन्दा के चले जाने के बाद उसका फूल-सा बच्चा राजा उठा और आंखें मलता हुआ बोला- अम्मां कहाँ है?

प्रेमसिंह ने उसे गोद में लेकर कहा- अम्मां मिठाई लेने गई है।

राजा खुश हो गया, बाहर जाकर लड़कों के साथ खेलने लगा। मगर कुछ देर के बाद फिर बोला- अम्मॉँ मिठाई।

प्रेमसिंह ने मिठाई लाकर दी। मगर राजा रो-रोकर कहता रहा, अम्मा मिठाई। वह शायद समझ गया था कि अम्माँ की मिठाई इस मिठाई से ज्यादा मीठी होगी।

आखिर प्रेमसिंह ने उसे कंधे पर चढ़ा लिया और दोपहर तक खेतों में घूमता रहा। राजा कुछ देर तक चुप रहता और फिर चौंककर पूछने लगता- अम्मा कहाँ है?

बूढ़े सिपाही के पास इस सवाल का कोई जबाब न था। वह बच्चे के पास से एक पल को कहीं न जाता और उसे बातों में लगाये रहता कि कहीं वह फिर न पूछ बैठै, अम्मा कहाँ है? बच्चों की स्मरणशक्ति कमजोर होती है। राजा कई दिनों तक बेकार रहा, आखिर धीरे-धीरे माँ की याद उसके दिल से मिट गई।

इस तरह तीन महीने गुजर गये। एक रोज शाम के वक्त राजा अपने दरवाजे पर खेल रहा था कि वृन्दा आती दिखाई दी। राजा ने उसकी तरफ गौर से देखा, जरा झिझका, फिर दौड़कर उसकी टाँगों से लिपट गया और बोला- अम्मा, आयी, अम्मा आयी।

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