कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 38 प्रेमचन्द की कहानियाँ 38प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग
उजागर- लेकिन मैं रंग-वंग तो लाया नहीं। भेजो चटपट किसी को मेरी कोठी से रंग-पिचकारी वगैरह लाये। (साईस से) क्यों घसीटे, आज तो बड़ी बहार है।
घसीटे- बड़ी बहार है, बहार है, होली है !
उजागर- (गाते हुए) आज साहब के साथ मेरी होली मचेगी, आज साहब के साथ मेरी होली मचेगी, खूब पिचकारी चलाऊँगा।
घसीटे- खूब अबीर लगाऊँगा।
ग्वाला- खूब गुलाल उड़ाऊँगा।
धोबी- बोतल-पर-बोतल चढ़ाऊँगा।
अरदली- खूब कबीरे सुनाऊँगा।
उजागर- आज साहब के साथ मेरी होली मचेगी।
नूरअली- अच्छा, सब लोग सँभल जाओ। साहब का मोटर आ रहा है। सेठजी, यह लीजिए, मैं दौड़कर रंग-पिचकारी लाया, बस एक चौताल छेड़ दीजिए और जैसे ही साहब कमरे में आयें, उन पर पिचकारी छोड़िए और (दूसरे से) तुम लोग भी उनके मुँह में गुलाल मलो, साहब मारे खुशी के फूल जायेंगे। वह लो, मोटर हाते में आ गया। होशियार!
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