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प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9800

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग


मिस जोशी- नहीं, संसार इतना उदार नहीं हुआ कि आप जिसे गालियां दें, वह आपको धन्यवाद दे। आपको याद है कि कल आपने अपने व्याख्यान में मुझ पर क्या-क्या आक्षेप किए थे? मैं आपसे जोर देकर कहती हूं कि वे आक्षेप करके आपने मुझ पर घोर अत्याचार किया है। आप जैसे सहृदय, शीलवान, विद्वान आदमी से मुझे ऐसी आशा न थी। मैं अबला हूं, मेरी रक्षा करने वाला कोई नहीं है? क्या आपको उचित था कि एक अबला पर मिथ्यारोपण करें? अगर मैं पुरुष होती तो आपसे ड्यूल खेलने का आग्रह करती। अबला हूं, इसलिए आपकी सज्जनता को स्पर्श करना ही मेरे हाथ में है। आपने मुझ पर जो लांछन लगाये हैं, वे सर्वथा निर्मूल हैं।

आपटे ने दृढ़ता से कहा- अनुमान तो बाहरी प्रमाणों से ही किया जाता है।

मिस जोशी- बाहरी प्रमाणों से आप किसी के अंतस्तल की बात नहीं जान सकते ।

आपटे- जिसका भीतर-बाहर एक न हो, उसे देख कर भ्रम में पड़ जाना स्वाभाविक है।

मिस जोशी- हां, तो वह आपका भ्रम है और मैं चाहती हूं कि आप उस कलंक को मिटा दें जो आपने मुझ पर लगाया है। आप इसके लिए प्रायश्चित करेंगे?

आपटे- अगर न करूं तो मुझसे बड़ा दुरात्मा संसार में न होगा।

मिस जोशी- आप मुझपर विश्वास करते हैं।

आपटे- मैंने आज तक किसी रमणी पर विश्वास नहीं किया।

मिस जोशी- क्या आपको यह संदेह हो रहा है कि मैं आपके साथ कौशल कर रही हूं?

आपटे ने मिस जोशी की ओर अपने सदय, सजल, सरल नेत्रों से देख कर कहा- बाई जी, मैं गंवार और अशिष्ट प्राणी हूं। लेकिन नारी-जाति के लिए मेरे हृदय में जो आदर है, वह श्रद्धा से कम नहीं है, जो मुझे देवताओं पर हैं। मैंने अपनी माता का मुख नहीं देखा, यह भी नहीं जानता कि मेरा पिता कौन था; किंतु जिस देवी के दया-वृक्ष की छाया में मेरा पालन-पोषण हुआ उनकी प्रेम-मूर्ति आज तक मेरी आंखों के सामने है और नारी के प्रति मेरी भक्ति को सजीव रखे हुए है। मैं उन शब्दों को मुंह से निकालने के लिए अत्यंत दु:खी और लज्जित हूं जो आवेश में निकल गये, और मैं आज ही समाचार-पत्रों में खेद प्रकट करके आपसे क्षमा की प्रार्थना करूंगा।

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