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प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9800

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग


आपटे- जब मैं अपने अपराध पर लज्जित होकर आपसे क्षमा मांग रहा हूं, तो मेरा अपराध रहा ही कहाँ, जिसका आप मुझसे बदला लेंगी। इससे तो मुझे भय होता है कि आपने मुझे क्षमा नहीं किया। लेकिन यदि मैंने आपसे क्षमा न मांगी तो मुझसे तो बदला न ले सकतीं। बदला लेने वाले की आंखें यों सजल नहीं हो जाया करतीं। मैं आपको कपट करने के अयोग्य समझता हूं। आप यदि कपट करना चाहतीं तो यहां कभी न आतीं।

मिस जोशी- मैं आपका भेद लेने ही के लिए आयी हूं।

आपटे- तो शौक से लीजिए। मैं बतला चुका हूं कि मैंने चोरी के अपराध में कैद की सजा पायी थी। नासिक के जेल में रखा गया था। मेरा शरीर दुर्बल था, जेल की कड़ी मेहनत न हो सकती थी और अधिकारी लोग मुझे कामचोर समझ कर बेंतो से मारते थे। आखिर एक दिन मैं रात को जेल से भाग खड़ा हुआ।

मिस जोशी- आप तो छिपे रुस्तम निकले!

आपटे- ऐसा भागा कि किसी को खबर न हुई। आज तक मेरे नाम वारंट जारी है और 500 रु0 का इनाम भी है।

मिस जोशी- तब तो मैं आपको जरूर पकड़ा दूंगी।

आपटे- तो फिर मैं आपको अपना असल नाम भी बता देता हूं। मेरा नाम दामोदर मोदी है। यह नाम तो पुलिस से बचने के लिए रख छोड़ा है।

बालक अब तक तो चुपचाप बैठा हुआ था। मिस जोशी के मुंह से पकड़ाने की बात सुनकर वह सजग हो गया। उन्हें डांटकर बोला- हमाले दादा को कौन पकड़ेगा?

मिस जोशी- सिपाही और कौन?

बालक- हम सिपाही को मालेंगे।

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