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प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9800

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग


आपटे ने मिस जोशी की ओर वेदना पूर्ण दृष्टि से देखकर कहा- अगर मैं आपकी कुछ सेवा कर सकूं तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। मिस जोशी! हम सब मिट्टी के पुतले हैं, कोई निर्दोष नहीं। मनुष्य बिगड़ता है तो परिस्थितियों से, या पूर्व संस्कारों से। परिस्थितियों का त्याग करने से ही बच सकता है, संस्कारों से गिरने वाले मनुष्य का मार्ग इससे कहीं कठिन है। आपकी आत्मा सुन्दर और पवित्र है, केवल परिस्थितियों ने उसे कुहरे की भांति ढंक लिया है। अब विवेक का सूर्य उदय हो गया है, ईश्वर ने चाहा तो कुहरा भी फट जाएगा। लेकिन सबसे पहले उन परिस्थितियों का त्याग करने को तैयार हो जाइए।

मिस जोशी- यही आपको करना होगा।

आपटे ने चुभती हुई निगाहों से देख कर कहा- वैद्य रोगी को जबरदस्ती दवा पिलाता है।

मिस जोशी- मैं सब कुछ करूंगी। मैं कड़वी से कड़वी दवा पियूंगी यदि आप पिलायेंगे। कल आप मेरे घर आने की कृपा करेंगे, शाम को?

आपटे- अवश्य आऊंगा।

मिस जोशी ने विदा देते हुए कहा- भूलिएगा नहीं, मैं आपकी राह देखती रहूंगी। अपने रक्षक को भी लाइएगा।

यह कहकर उसने बालक को गोद में उठाया ओर उसे गले से लगा कर बाहर निकल आयी।

गर्व के मारे उसके पांव जमीन पर न पड़ते थे। मालूम होता था, हवा में उड़ी जा रही है, प्यास से तड़पते हुए मनुष्य को नदी का तट नजर आने लगा था।

दूसरे दिन प्रात:काल मिस जोशी ने मेहमानों के नाम दावती कार्ड भेजे और उत्सव मनाने की तैयारियां करने लगी। मिस्टर आपटे के सम्मान में पार्टी दी जा रही थी। मिस्टर जौहरी ने कार्ड देखा तो मुस्कराये। अब महाशय इस जाल से बचकर कहां जायेंगे। मिस जोशी ने उन्हें फंसाने के लिए यह अच्छी तरकीब निकाली। इस काम में निपुण मालूम होती है। मैंने सकझा था, आपटे चालाक आदमी होगा, मगर इन आन्दोलनकारी विद्राहियों को बकवास करने के सिवा और क्या सूझ सकती है।

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