लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9800

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

289 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग


‘मित्रों! आपको याद है, परसों महाशय आपटे ने मुझे कितनी गांलियां दी थी। यह महाशय खड़े हैं । आज मैं इन्हें उस दुर्व्यवहार का दण्ड देना चाहती हूं। मैं कल इनके मकान पर जाकर इनके जीवन के सारे गुप्त रहस्यों को जान आयी। यह जो जनता की भीड़ गरजते फिरते हैं, मेरे एक ही निशाने पर गिर पड़े। मैं उन रहस्यों के खोलने में अब विलंब न करूंगी, आप लोग अधीर हो रहे होंगे। मैंने जो कुछ देखा, वह इतना भयंकर है कि उसका वृतांत सुनकर शायद आप लोगों को मूर्छा आ जायेगी। अब मुझे लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि यह महाशय पक्के देशद्रोही हैं....’

मिस्टर जौहरी ने ताली बजायी ओर तालियों से हॉल गूंज उठा।

मिस जोशी- लेकिन राज के द्रोही नहीं, अन्याय के द्रोही, दमन के द्रोही, अभिमान के द्रोही...

चारों ओर सन्नाटा छा गया। लोग विस्मित होकर एक दूसरे की ओर ताकने लगे।

मिस जोशी- गुप्त रुप से शस्त्र जमा किए हैं और गुप्त रुप से हत्याएँ की हैं.........

मिस्टर जौहरी ने तालियां बजायीं और तालियों का दौगड़ा फिर बरस गया।

मिस जोशी- लेकिन किस की हत्या? दु:ख की, दरिद्रता की, प्रजा के कष्टों की, हठधर्मी की और अपने स्वार्थ की।

चारों ओर फिर सन्नाटा छा गया और लोग चकित हो-हो कर एक दूसरे की ओर ताकने लगे, मानो उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं है।

मिस जोशी- महाराज आपटे ने डकैतियां की और कर रहे हैं---

अब की किसी ने ताली न बजायी, लोग सुनना चाहते थे कि देखे आगे क्या कहती है।

‘उन्होंने मुझ पर भी हाथ साफ किया है, मेरा सब कुछ अपहरण कर लिया है, यहां तक कि अब मैं निराधार हूं और उनके चरणों के सिवा मेरे लिए कोई आश्रय नहीं है। प्राणधार! इस अबला को अपने चरणों में स्थान दो, उसे डूबने से बचाओ। मैं जानती हूं तुम मुझे निराश न करोगे।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai