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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


एक मेम्बर ने कहा- मेरे विचार में तो इन जातों में पंचायतों को फिर सँभालना चाहिए। इधर लापरवाही से उनकी पंचायतें निर्जीव हो गई हैं। इसके सिवा मुझे तो और भी कोई उपाय नहीं सूझता।

सभापति ने कहा- हाँ, यह एक उपाय है। मैं इसे नोट किए लेता हूँ, पर धरना देना जरूरी है।

दूसरे महाशय बोले- उनके घरों पर जाकर समझाया जाए, तो अच्छा असर होगा।

सभापति ने अपनी चिकनी खोपड़ी सहलाते हुए कहा- यह भी अच्छा उपाय है; मगर धरने को हम लोग त्याग नहीं सकते।

फिर सन्नाटा हो गया। पिछली कतार में एक देवी भी मौन बैठी हुई थी। जब कोई मेम्बर बोलता वह एक नजर उसकी तरफ डालकर फिर सिर झुका लेती थीं। यही काँग्रेस की लेडी मेम्बर थीं। उनके पति महाशय जी० पी० सक्सेना काँग्रेस के अच्छे काम करने वालों में थे। उनका देहांत हुए तीन साल हो गए थे। मिसेज सक्सेना ने इधर एक साल से काँग्रेस के कामों में भाग लेना शुरू कर दिया था और काँग्रेस-कमेटी ने उन्हें अपना मेम्बर चुन लिया था। वह शरीफ घरानों में जाकर स्वदेशी और खद्दर का प्रचार करती थीं। जब कभी काँग्रेस के प्लेटफार्म पर बोलने खड़ी होतीं तो उनका जोश देखकर ऐसा मालूम होता था, आकाश में उड़ जाना चाहती हैं। कुंदन का-सा रंग लाल हो जाता था, बड़ी-बड़ी करुण आँखें जिनमें जल भरा हुआ मालूम होता था, चमकने लगती थीं। बड़ी खुश मिजाज और इसके साथ बला की निर्भीक स्त्री थीं। दबी हुई चिनगारी थी, जो हवा पाकर दहक उठती है। उसके मामूली शब्दों में इतना आकर्षण कहाँ से आ जाता था, कह नहीं सकते।

कमेटी के कई जवान मेम्बर, जो पहले काँग्रेस में बहुत कम आते थे, अब बिलानागा आने लगे थे। मिसेज सक्सेना कोई भी प्रस्ताव करें, उनका अनुमोदन करने वालों की कमी न थी। उनकी सादगी, उनका उत्साह, उनकी विनय, उनकी मृदु-वाणी कांग्रेस पर उनका सिक्का जमाये देती थी। हर आदमी उनकी खातिर सम्मान की सीमा तक करता था; पर उनकी स्वाभाविक नम्रता उन्हें अपने दैवी साधनों से पूरा-पूरा फायदा न उठाने देती थी। जब कमरे में आतीं, लोग खड़े हो जाते थे; पर वह पिछली सफ से आगे न बढ़ती थीं। मिसेज सक्सेना ने प्रधान से पूछा- शराब की दूकानों पर औरतें धरना दे सकती हैं?

सबकी आंखें उनकी ओर उठ गयीं। इस प्रश्न का आशय सब समझ गये। प्रधान ने कातर स्वर में कहा- महात्मा जी ने तो यह काम औरतों को ही सुपुर्द करने पर जोर दिया है पर...

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