लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

420 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


चौधरी ने खानसामा की ओर कटाक्ष करके कहा- क्या समझते हो, मैं कल फिर पीने आऊँगा?

खानसामा ने उद्दडंता से कहा- हाँ-हाँ; कहता हूँ, तुम आओगे और बद कर आओगे। कहो, पक्के कागज पर लिख दूँ!

चौधरी- अच्छा भाई, तुम बड़े धरमात्मा हो, मैं पापी सही। तुम छोड़ोगे तो जिंदगी-भर के लिए छोड़ोगे, मैं आज छोड़ कर कल फिर पीने लगूंगा, यही सही। मेरी एक बात गाँठ बाँध लो। तुम उस बखत छोड़ोगे, जब जिंदगी तुम्हारा साथ छोड़ देगी। इसके पहले तुम नहीं छोड़ सकते। जब जिंदगी तुम्हारा साथ छोड़ देगी। इसके पहले तुम नहीं छोड़ सकते।

खासनामा- तुम मेरे दिल का हाल क्या जानते हो?

चौधरी- जानता हूँ, तुम्हारे जैसे सैकड़ों आदमी को भुगत चुका हूँ।

खासनामा- तो तुमने ऐसे-वैसे बेशर्मों को देखा होगा। हयादार आदमियों को न देखा होगा। यह कहते हुए उसने जा कर बोतल पटक दी और बोला- अब अगर तुम इस दूकान पर देखना, तो मुँह में कालिख लगा देना।

चारों तरफ तालियाँ बजने लगीं। मर्द ऐसे होते हैं! ठीकेदार ने दूकान के नीचे उतर कर कहा- तुम लोग अपनी-अपनी दूकान पर क्यों नहीं जाते जी? मैं तो किसी की दूकान पर नहीं जाता?

एक दर्शक ने कहा- खड़े हैं, तो तुमसे मतलब? सड़क तुम्हारी नहीं हैं? तुम गरीबों को लूट जाओ। किसी के बाल-बच्चे भूखों मरें तुम्हारा क्या बिगड़ता है। (दूसरे शराबियों से) क्या यारो, अब भी पीते जाओगे! जानते हो, यह किसका हुक्म है? अरे कुछ भी तो शर्म हो?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book