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प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


वसुधा का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। बोली, "किसके हुक्म से बैंक के मैनेजर और हाकिम जिला को मोटरें भेजी गयीं? आप दोनों मँगवा लीजिए। मैं आज जरूर जाऊँगी।"

'उन दोनों साहबों के पास हमेशा मोटरें भेजी जाती रही हैं; इसलिए मैंने भेज दीं। अब आप हुक्म दे रही हैं, तो मँगवा लूँगा!'

वसुधा ने फोन से आकर सफर का सामान ठीक करना शुरू किया। उसने उसी आवेश में आकर अपना भाग्य-निर्णय करने का निश्चय कर लिया था। परित्यक्ता की भाँति पड़ी रहकर जीवन को समाप्त न करना चाहती थी। वह जाकर कुँवर साहब से कहेगी अगर आप समझते हैं कि मैं आपकी सम्पत्ति की लौंडी बनकर रहूँ, तो यह मुझसे न होगा। आपकी सम्पत्ति आपको मुबारक हो। मेरा अधिकार आपकी सम्पत्ति पर नहीं, आपके ऊपर है। अगर आप मुझसे जौ-भर हटना चाहते हैं, तो मैं आपसे हाथ-भर हट जाऊँगी! इस तरह की और कितनी ही विराग-भरी बातें उसके मन में बगूलों की भाँति उठ रही थीं। डाक्टर साहब ने द्वार पर आकर पुकारा, " मैं अन्दर आऊँ?"

वसुधा ने नम्रता से कहा, "आज क्षमा कीजिए, मैं जरा पीलीभीत जा रही हूँ।"

डाक्टर ने आश्चर्य से कहा, "आप पीलीभीत जा रही हैं! आपका ज्वर बढ़ जायगा। इस दशा में मैं आपको जाने की सलाह न दूँगा।"

वसुधा ने विरक्त स्वर में कहा, " बढ़ जायगा, बढ़ जाय; मुझे इसकी चिन्ता नहीं है!

वृद्ध डाक्टर परदा उठाकर आ गया और वसुधा के चेहरे की ओर ताकता हुआ बोला लाइए मैं टेम्परेचर ले लूँ। अगर टेम्परेचर बढ़ा होगा, तो मैं आपको हरगिज न जाने दूँगा।

'टेम्परेचर लेने की जरूरत नहीं। मेरा इरादा पक्का हो गया है।'

'स्वास्थ्य पर ध्यान रखना आपका पहला कर्तव्य है।'

वसुधा ने मुस्कराकर कहा, "आप निश्चिन्त रहिए, मैं इतनी जल्द मरी नहीं जा रही हूँ! फिर अगर किसी बीमारी की दवा मौत ही हो, तो आप क्या करेंगे?"

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