कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 41 प्रेमचन्द की कहानियाँ 41प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग
मैं खुशी से फूल उठा- कुमुदिनी मेहर सिंह के भेस में! मैंने उसी वक्त उसे गले से लगा लिया और खूब दिल खोलकर प्यार किया। इन कुछ क्षणों में मुझे जो खुशी हुई उसके मुकाबिले में जिंदगी-भर की खुशियां हेय हैं। हम दोनों आलिंगन-पाश में बंधे हुए थे। कुमुदिनी, प्यारी कुमुदिनी के मुंह से आवाज न निकलती थी। हां, आंखों से आंसू जारी थे।
मिस लीला बाहर खड़ी कोमल आंखों से यह दृश्य देख रही थी। मैंने उसके हाथों को चूमकर कहा- प्यारी लीला, तुम सच्ची देवी हो, जब तक जियेंगे तुम्हारे क़ृतज्ञ रहेंगे।
लीला के चेहरे पर एक हल्की-सी मुसकराहट दिखायी दी। बोली- अब तो शायद तुम्हें मेरे शोक का काफी पुरस्कार मिल गया।
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