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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


काक- ''जी, मैं आपका नमकख्वार हूँ। आप मुझे अपना गुलाम समझें। मेरे लायक जो काम हो वह बेतकल्लुफ़ फरमाएँ।''

हरबर्ट- ''तुम तो जानते हो मुझे कुत्तों की सूरत से नफ़रत है।''

काक- ''जी हाँ, मैं खूब जानता हूँ। इन्हें देखते ही आपकी रूह काँपने लगती है।''

हरबर्ट- ''खैर, यू ही सही। इस शैतान राबिन ने मेरा नाक में दम कर रखा है। इसे किसी तरह यहाँ से दफ़ा कर दो।''

काक- ''यह क्योंकर हो सकता है?''

हरबर्ट- ''बस जहर दे दो।''

काक- ''अरे हुजूर, यह क्या फरमाते हैं?''

हरबर्ट- ''मैं दस पाउंड दूँगा, समझे।''

काक- ''हुजूर... ''

हरबर्ट- ''अच्छा बीस पाउंड सही।''

काक- ''हुजूर, बहुत मुश्किल काम है।''

हरबर्ट- ''इंकार मत करो। पच्चीस पाउंड मिल जाएँगे।''

इतने में उधर से मिस लैला के चचा को आते देखकर हरबर्ट जल्दी से बाहर चला गया।

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