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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


काक- ''इसे हुजूर, रोगन तो लग जाने दीजिए। हिम्मत क्यों हारते हैं। हाँ, आशिकी में तो हिम्मत ही दरकार है।''

हरबर्ट- ''अच्छा, इसके सर पर हाथ तो रखो।''

काक- ''हुजूर खुद ही रख लें। जरा भी न बोलेगा।''

यह कहकर उसने डरते-डरते उस कुत्ते का पहले एक कान पकड़ लिया। फिर जरा ढीठ होकर उठा लिया, मगर कुत्ते के मुँह से आवाज़ तक न निकली। तब लार्ड साहब को और जुर्रत हुई। आपने डरते-डरते (गोया शेर का बच्चा है) आहिस्ता से उसके सर पर हाथ रखा। कुत्ते ने खाइफ़ (भयभीत) और दुज्दीदी निगाहों (कनखियों) से देखा और जरा दुम हिलाकर रह गया। हरबर्ट मारे खुशी के उछल पड़े और कहा- ''आज शाम तक काम बन जाए, वरना फिर एक पाउंड भी न दूँगा।''

काक- ''बस, आज ही शाम को लीजिए।''

एक दिन की बजाए दो दिन गुज़र गए और काक आता ही नहीं है। अड़तालीस घंटे लार्ड हरबर्ट ने बड़ी उम्मीद-ओ-पैहम (निरंतर आशा) मैं काटे। कभी तो बिलकुल यक़ीन न आता और वह सोचते कि काक ने मुझ से शरारत की है और कभी उम्मीद ज्यादा खुशगवार सूरत अख्तयार कर लेती। आखिर तीसरे दिन काक आ धमका तो आप कहने लगा- ''सुना जी, हमारा-तुम्हारा वायदा एक दिन का था। आज तीसरा दिन है। अब मैं एक कौड़ी भी न दूँगा। समझे।''

काक - ''हुजूर, काम मुकम्मिल हो गया।''

हरबर्ट (उछल कर)- ''सच, जाहिर तो नहीं होता।''

काक- ''अब हुजूर खुद इसका फ़ैसला कर लें।''

दोनों आदमी मिस लैला के अहाते में आए। राबिन की शक्ल-सूरत और रंग का एक कुत्ता पड़ा सो रहा था। हरबर्ट इसे देखकर बोले- ''बखुदा, यह तो राबिन है, तू मुझे धोखा दे रहा है।''

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