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प्रेमचन्द की कहानियाँ 43

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9804

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतालीसवाँ भाग


कोई आगे नहीं बढ़ता। सन्नाटा छाया रहता है।

एकाएक शोर मचा—पुलिस! पुलिस आ गयी!!

पुलिस का दारोगा कांस्टेबिलों के एक दल के साथ आ कर सामने खड़ा हो गया। लोगों ने सहमी हुई आँखों और धड़कते हुऐ दिलों से उनकी ओर देखा और छिपने के लिए बिल खोजने लगे।

दारोगाजी ने हुक्म दिया- मार कर भगा दो इन बदमाशों को?

कांसटेबलों ने अपने डंडे सँभाले; मगर इसके पहले कि वे किसी पर हाथ चलायें, सभी लोग हुर्र हो गये! कोई इधर से भागा, कोई उधर से। भगदड़ मच गयी। दस मिनट में वहाँ गाँव का एक आदमी भी न रहा। हाँ, नायक अपने स्थान पर अब भी खड़ा था और जत्था उसके पीछे बैठा हुआ था; केवल कोदई चौधरी नायक के समीप बैठे हुए थिर आँखों से भूमि की ओर ताक रहे थे।

दारोगा ने कोदई की ओर कठोर आँखों से देखकर कहा- क्यों रे कोदइया, तूने इन बदमाशों को क्यों ठहराया यहाँ? कोदई ने लाल-लाल आँखों से दारोगा की ओर देखा और जहर की तरह गुस्से को पी गये। आज अगर उनके सिर गृहस्थी का बखेड़ा न होता, लेना-देना न होता तो वह भी इसका मुँहतोड़ जवाब देते। जिस गृहस्थी पर उन्होंने अपने जीवन के पचास साल होम कर दिये थे; वह इस समय एक विषैले सर्प की भाँति उनकी आत्मा में लिपटी हुई थी। कोदई ने अभी कोई जवाब न दिया था कि नोहरी पीछे से आकर बोली- क्या लाल पगड़ी बाँधकर तुम्हारी जीभ ऐंठ गयी है? कोदई क्या तुम्हारे गुलाम हैं कि कोदइया-कोदइया कर रहे हो? हमारा ही पैसा खाते हो और हमीं को आँखें दिखाते हो? तुम्हें लाज नहीं आती?

नोहरी इस वक्त दोपहरी की धूप की तरह काँप रही थी। दारोगा एक क्षण के लिए सन्नाटे में आ गया। फिर कुछ सोचकर औरत के मुँह लगना अपनी शान के खिलाफ समझकर कोदई से बोला- यह कौन शैतान की खाला है, कोदई! खुदा का खौफ न होता तो इसकी जबान तालू से खींच लेता।

बुढ़िया लाठी टेककर दारोगा की ओर घूमती हुई बोली- क्यों खुदा की दुहाई देकर खुदा को बदनाम करते हो। तुम्हारे खुदा तो तुम्हारे अफसर हैं, जिनकी तुम जूतियाँ चाटते हो। तुम्हें तो चाहिए था कि डूब मरते चिल्लू भर पानी में! जानते हो, यह लोग जो यहाँ आये हैं, कौन हैं? यह वह लोग हैं, जो हम गरीबों के लिए अपनी जान तक होमने को तैयार हैं। तुम उन्हें बदमाश कहते हो! तुम जो घूस के रुपये खाते हो, जुआ खेलाते हो, चोरियाँ करवाते हो, डाके डलवाते हो; भले आदमियों को फँसा कर मुट्ठियाँ गरम करते हो और अपने देवताओं की जूतियों पर नाक रगड़ते हो, तुम इन्हें बदमाश कहते हो!

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