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प्रेमचन्द की कहानियाँ 43

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9804

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतालीसवाँ भाग


मैजिनी- आमदनी की तो कोई सूरत नजर नहीं आती। जो लेख मासिक पत्रिकाओं के लिए लिखे थे, वह वापस ही आ गये। घर से जो कुछ मिलता है, वह कब खत्म हो चुका है। अब और कौन-सा जरिया है?

रफेती- अभी क्रिसमस को हफ्ता भर पड़ा है। अभी से उसकी क्या फिक्र करें। और अगर मान लो नहीं कोट पहना तो क्या? तुमने नहीं मेरी बीमारी में डॉक्टर की फीस के लिए मैग्डलीन की अंगूठी बेच डाली थी? मैं जल्दी ही यह बात उसे लिखने वाला हूं, देखना तुम्हें कैसा बनाती है।

क्रिसमस का दिन है, लंदन में चारों तरफ खुशियों की गर्म बाजारी है। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सब अपने-अपने घर खुशियां मना रहे हैं और अपने अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर गिरजाघरों में जा रहे हैं। कोई उदास सूरत नजर नहीं आती। ऐसे वक्त मैजिनी और रेफती दोनों उसी छोटी-सी अंधेरी कोठरी में सर झुकाए खामोश बैठे हैं। मैजिनी ठण्डी आहें भर रहा है और रफेती रह-रहकर दरवाजे पर आता है और बदमस्त शराबियों को और दिनों से ज्यादा बहकते और दीवानेपन की हरकतें करते देखकर अपनी गरीबी और मुहताजी की फिक्र दूर करना चाहता है।

अफसोस इटली का सरताज, जिसकी एक ललकार पर हजारों आदमी अपना खून बहाने के लिए तैयार हो जाते थे, आज ऐसा मुहताज हो रहा है कि उसे खाने का ठिकाना नहीं। यहां तक कि आज सुबह से उसने एक सिगार भी नहीं पिया। तंबाकू ही दुनिया की वह नेमत थी जिससे वह हाथ नहीं खींच सकता था और वह भी आज उसे नसीब न हुआ। मगर इस वक्त उसे अपनी फिक्र नहीं। रफेती, नौजवान, खुशहाल और खूबसूरत होनहार रफेती की फिक्र जी पर भारी हो रही है। वह पूछता है कि मुझे क्या हक है कि मैं एक ऐसे आदमी को अपने साथ गरीबी की तकलीफें झेलने पर मजबूर करूं जिसके स्वागत के लिए दुनिया की बस नेमतें बांहें खोले खड़ी हैं।

इतने में एक चिट्ठीरसा ने पूछा- जोजेफ मैजिनी यहां कहां रहता है? अपनी चिट्ठी ले जा।

रफेती ने खत ले लिया और खुशी के जोश से उछलकर बोला- जोजेफ, यह लो, मैग्डलीन का खत है।

मैजिनी ने चौंककर खत ले लिया और बड़ी बेसब्री से खोला। लिफाफा खोलते ही थोड़े-से बालों का एक गुच्छा गिर पड़ा, जो मैग्डलीन ने क्रिसमस के उपहार के रुप में भेजा था। मैजिनी ने उस गुच्छे को चूमा और उसे उठाकर अपने सीने की जेब में खोंसे लिया। खत में लिखा था-

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