लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9807

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग


‘नहीं, काटेगा नहीं, डरो मत। कहां जाना है?’

‘महमूदनगर।’

‘महमूदनगर का रास्ता तो तुम पीछे छोड़ आये, आगे तो नदी है।’

मेरा कलेजा बैठ गया, रुआंसा होकर बोला- महमूदनगर का रास्ता कितनी दूर छूट गया है?

‘यही कोई तीन मील।’

और एक लहीम-शहीम आदमी हाथ में लालटन लिये हुए आकर मेरे आमने खड़ा हो गया। सर पर हैट था, एक मोटा फ़ौजी ओवरकोट पहने हुए, नीचे निकर, पांव में फुलबूट, बड़ा लंबा-तड़ंगा, बड़ी-बड़ी मूँछें, गोरा रंग, साकार पुरुष-सौन्दर्य। बोला- तुम तो कोई स्कूल के लडके मालूम होते हो।

‘लड़का तो नहीं हूँ, लड़कों का मुदर्रिस हूँ, घर जा रहा हूँ। आज से तीन दिन की छुट्टी है।’

‘तो रेल से क्यों नहीं गये?’

रेल छूट गयी और दूसरी एक बजे छूटती है।’

‘वह अभी तुम्हें मिल जाएगी। बारह का अमल है। चलो मैं स्टेशन का रास्ता दिखा दूँ।’

‘कौन-से स्टेशन का?’

‘भगवन्तपुर का।’

‘भगवन्तपुर ही से तो मैं चला हूँ। वह बहुत पीछे छूट गया होगा।’

‘बिल्कुल नहीं, तुम भगवन्तपुर स्टेशन से एक मील के अन्दर खड़े हो। चलो मैं तुम्हें स्टेशन का रास्ता दिखा दूँ। अभी गाड़ी मिल जाएगी। लेकिन रहना चाहो तो मेरे झोंपड़े में लेट जाओ। कल चले जाना।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book