लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

Like this Hindi book 0

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

सूरदास का वंश- सूरदास जी किस वंश में उत्पन्न हुए थे, यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता। कुछ विद्वान् इन्हें सारस्वत ब्राह्मण कहते हैं,। अन्य विद्वानों का मत है कि सूरदास ब्रह्मभट्ट थे तथा दूसरों का विश्वास है कि वे ब्राह्मण या ब्रह्मभट्ट न होकर ब्रह्मणेतर कुल से सम्बद्ध थे। इस सम्बन्ध में निम्न प्रमाण उपस्थित किये जाते हैं-

सो समर करि साहि सेवक गये विधि के लोक
रही सूर चंद दृग ते हीन भर पर सोक
परो कूप पुकार काहु सुनी ना संसार
सताये दिन आई जदुपति कियो आप उद्धार
प्रबल दच्छिन विप्र कुल ते शत्रु ह्वैहै नास

(साहित्य-लहरी) आदि पद के अनुसार सूरदास जी को महाकवि चन्दवरदाई का वंशज ब्रह्मभट्ट कहा जाता है; पर वास्तव में इस पद में जो वंशावली दी गई है वह चन्द की दूसरी वंशावलियों से भिन्न है। यह सूरदास इस पद में कहे गये ब्रह्मभट्ट सूरदास नहीं है। दक्षिण के विप्रकुल पेशवाओं का उल्लेख होने से निश्चित ही यह पद पेशवाओं के समय का या उसके भी बाद का है। अत: हम कह सकते हैं कि इस पद में कही गई सभी बातें असत्य प्रतीत होती हैं। क्योंकि इसमें कहा गया है कि चन्द के वंश में 'हर चन्द' नामक एक व्यक्ति हुआ। उसके सात पुत्र थे जो आगरे के पास गोपाचल नामक स्थान में रहते थे। सूर सबसे छोटे थे। इनके छहों बड़े भाइयों की मृत्यु मुसलमानों के साथ युद्ध में हुई; किन्तु ये अन्धे होने के कारण बच रहे। भाइयों की मृत्यु से दुःखित होकर एक दिन ये कुएं में गिर पडे। भगवान् श्रीकृष्ण ने इन्हें कुएँ से बाहर निकाला और कहा कि तुम्हारे भाइयों का वध करने वाले मुसलमान राजाओं का नाश दक्षिण के पेशवा करेंगे। इस पद की यह सब बातें वास्तव में अप्रामाणिक प्रतीत होती हैं। सूरदास जी को जैसा कि 'चौरासी वैष्णवों की वार्ता' व 'भक्तमाल की टीका' में ब्राह्मण कहा गया है वही पक्ष सत्य है। सूरदास ब्रह्मभट्ट न होकर ब्राह्मण थे यही मानना होगा; किन्तु वे सारस्वत ब्राह्मण थे या कोई अन्य-यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। सूरदास के माता-पिता कौन थे, यह अभी तक निश्चित नहीं हो सका है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai