भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
कहा जाता है कि सूरदास की सम्राट् अकबर से भी भेंट हुई थी। 'चौरासी वैष्णवों की वार्ता' की टीका में ऐसा उल्लेख भी मिलता है और यह बड़ी बात भी नहीं; क्योंकि अकबर धार्मिक विचारों के एवं बहुत उदार थे। अनेक कारणों से अधिकतर विद्वान इस भेंट की घटना को भी असत्य ही मानते हैं। अकबर के साथ उनकी भेंट होने या न होने से सूरदास के महत्व में किसी प्रकार की न्यूनता नहीं आती।
वल्लभाचार्य जी की सेवा- सं० १५६२ में वल्लभाचार्य जी महाराज जब तीर्थयात्रा करते हुए गऊ-घाट पर पहुँचे तो उन्होंने एक अंधे विरक्त साधु को बड़ी तन्मयता से प्रमु के विनय के पद गाते देखा। उसकी वाणी की मधुरता व भावों की विवशता से वे अत्यन्त प्रभावित हुए। अत: उन्होंने सूरदास जी को कहा कि अनाथों की भांति क्यों घिघियाते हो, प्रभु का यश गाओ ( सो सुनि के श्री आचार्य जी आप सूरदास जी से कहे, जो सूर हैं कि ऐसे घिघियात काहे को हैं? कुछ भगवत लीला वर्णन कर)। तदनुसार सूरदास जी ब्रज में आ पहुंचे और वल्लभाचार्य जी से दीक्षा लेकर गोवर्धन पर श्री नाथ जी के सम्मुख श्रीकृष्ण-लीला के पद गाने लगे। आचार्य जी ने सूरदास को प्रमुख कीर्तन का अधिकारी नियुक्त किया। गोवर्धन आ जाने के पश्चात् सूरदास जी पारसोली में रहने लगे।
अष्टछाप के प्रमुख कवि-वल्लभाचार्य जी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र गो० विट्ठलनाथ जी ने सं० १६०२ में 'अष्टछाप' की स्थापना की। इस अष्टछाप में पुष्टि-मार्ग के आठ श्रेष्ठ कवियों को स्थान दिया गया। सूरदास इन सबमें प्रमुख स्थान पर सुशोभित हुए। इस प्रकार श्रीनाथ जी के मन्दिर की सेवा करते हुए सूरदास जी ने नित्य नये मनोहर पदों का निर्माण आरम्भ कर दिया। इन पदों की संख्या धीरे-धीरे सहस्रों तक जा पहुंची।
सूर की रचनाएँ- सूरदास के नाम पर अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं जिनमें से अधिकांश किन्हीं अन्य सूरदास के लिखे हुए हैं। वास्तव में सूरदास के तीन ग्रन्थ कहे जाते हैं-
(१) सूर-सारावली,
(२) साहित्य-लहरी,
(३) सूर-सागर।
इनमें से भी सूर-सारावली और साहित्य-लहरी को बहुत से विद्वान् अप्रामाणिक मानते है। साहित्य-लहरी में कुछ सूर-सागर के पद और कुछ दृष्टिकूट पद दिये गये हैं। इस ग्रन्थ के पद प्राय: सूर-सागर में भी मिल जाते हैं। सूर-सारावली सूर-सागर की सूची-मात्र है। इस प्रकार सूर-सागर ही वास्तव में सूरदास जी की उत्कृष्ट रचना है।
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