भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
इन्हीं दोनों तर्कों के आधार पर कुछ विद्वानों ने 'घट रामायण' के लेखक तुलसी साहब के दिये हुए संवत १५८९ को प्रामाणिक मान लिया। तुलसी साहब ने अपनी 'घट रामायण' में लिखा है कि पिछले जन्म में हम गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध थे। तब भी हमने एक रामायण (रामचरितमानस) लिखा था पर उसमें अनेक दोष रह गये थे, इसलिए हमने यह नया जन्म लेकर सब दोषों से रहित यह 'घट रामायण' लिखी है। इसी प्रसंग में उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास का जीवनवृत्त भी दिया, है और लिखा है कि पूर्व-जन्म में गोस्वामी तुलसीदास जी के रूप में हमारा जन्म संवत् १५८९ में हुआ था।
फलत: अनेक विद्वान् इस साक्षी के आधार पर इसी संवत् को प्रामाणिक मानने लग पड़े। वास्तव में तुलसी साहब के कथनानुसार गोस्वामी जी का जन्म १५८९ में कदापि नहीं माना जा सकता; क्योंकि तुलसी साहब ने जो तिथि वार दिये हैं उनमें दो-एक को छोड़ कर बाकी सब अशुद्ध हैं। वास्तव में तुलसी साहब ने अपने पूर्व जन्म के वृत्तान्त के निर्माण में किंवदन्तियों का ही सहारा लिया है। उनके दिये हुए सब संवत् कपोल-कल्पित ही हैं। अत: १५८९ में गोस्वामी जी का जन्म मानने का कोई युक्तिसंगत आधार नहीं। शेष रहा गोस्वामी जी की आयु का प्रश्न, सो तो गोस्वामी जी जैसे महापुरुष के लिए १२६ वर्ष की आयु प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं है। मानस की रचना भी ७७ वर्ष की ही आयु में होना संभव है। ७७ वर्ष की आयु में गोस्वामी जी मानस जैसा उत्कृष्ट काव्य नहीं लिख सकते थे-हम यह कदापि स्वीकार नहीं कर सकते; क्योंकि कवितावली के सभी प्रौढ़ कवित्तों की रचना निश्चित ही संवत् १६७० और ८० के बीच में हुई। १५८९ में जन्म मान लेने पर भी उस समय उनकी अवस्था ८१ वर्ष की ठहरती है। यदि वे ८१ वर्ष की बूढ़ी अवस्था में कवितावली के उत्कृष्ट कवित्तों की रचना कर सकते हैं तो ७५-७६ वर्ष की आयु में मानस का निर्माण क्यों नहीं कर सकते थे? यूरोप के विश्वविख्यात कवि जार्ज बर्नाड शॉ ९६ वर्ष की अवस्था में भी प्रौढ़तम साहित्य का निर्माण कर सकते हैं, तो गोस्वामी जी ७७ वर्ष की अवस्था में मानस का निर्माण करें, इसमें कौन-सी असम्भव बात है? गोस्वामी जी के समस्त जीवन-चरित्र का अध्ययन करने पर हम तो इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि ७०-७५ वर्ष की अवस्था से पूर्व गोस्वामी जी को मानस जैसे महान् ग्रन्थ के लिखने का न तो अवकाश ही हो सकता था और न नैपुण्य ही।
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