भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
प्रगतिवादी काव्य
युगवाणी- इसमें संवत् १९९३ से सं० २००० तक की रचनाएँ संकलित है। अब तक भारत में गाँधीवाद के साथ-साथ साम्यवाद की ओर भी जनता का झुकाव होने लगा था। अत: इस कविता में गाँधीवाद और साम्यवाद तथा कुछ प्रकृति के गीत भी गाये गये हैं।
ग्राम्या- यह पन्तजी की सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसमें भारतीय ग्राम- जीवन का अत्यन्त सजीव एवं स्वाभाविक चित्र अंकित हुआ है। ग्राम- वध, ग्राम-बनिया, ग्राम-नारी, तथा धोबियों, कहारों और चमारों के नृत्यों पर लिखे गये वैयक्तिक व सामूहिक चित्र बड़े हृदयहारी बने है। कला की दृष्टि से भी ग्राम्या में लोकरस की प्रधानता और भाषा में ग्राम-चित्रों को अंकित करने की ऐसी सशक्त योजना है जिससे ग्राम- जीवन मूर्त्त रूप में व्यक्त हो गया है। वस्तुत: ग्राम्या का एक-एक चित्र दर्शनीय बन पड़ा है।
आध्यात्मिक काव्य
स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, युगपथ और उत्तरा- सं० २००० के लगभग ७ वर्ष तक कवि की कोई रचना प्रकाशित नहीं हुई। भारत में बल्कि विश्व के राजनैतिक क्षेत्र में तो यह संघर्ष का काल था ही, इधर कवि का जीवन भी संघर्ष में रहा। एक बार रुग्ण होने पर वह मृत्यु-शथ्या तक जा पहुँचा। पर फिर प्रभु कृपा से स्वस्थ होने पर विश्वविख्यात योगिराज अरविन्द के आश्रम पाँडेचरी में जाकर आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ शारीरिक उन्नति भी कवि को प्राप्त हो गई। यहीं से पन्तजी के काव्य में अत्यधिक आध्यात्मिकता भी आ गई। इन आध्यात्मिक काव्यों में वेद और उपनिषद् के दिव्य भाव मुखरित हुए हैं। बाह्य विकास के लिए अन्तर का विकास आवश्यक हे इसलिए कवि भूत और चेतना, अध्यात्म और भौतिकता, मन और मस्तिष्क, बुद्धि और हृदय का समन्वय करके एक पूर्ण मानव-विकास की कल्पना करता है। यहाँ 'स्वर्ण' शब्द चेतना के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अत: इनके आध्यात्मिक काव्य में नवचेतनात्मक मानववाद मुखरित हो रहा है।
इधर कवि 'विद्युत् वसना' आदि ज्योत्स्ना की परम्परा में लघु-ध्वनि-रूपक भी लिखे हैं। पन्तजी के सम्पूर्ण काव्यों पर विचार करते हुए हम देखते है कि, उन्होंने क्रमश: विवेकानन्द, टैगोर, बापू और अरविन्द की भावधारा को अपनी कविता-सरिता में प्रवाहित कर भारतीय जन-जन को पूर्णतया आप्लावित कर दिया है। कोमलकान्ति पदावली व पूर्व-पश्चिम का समन्वय आदि इनकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। वे कवि की वाणी में तत्वचिन्तकों के विचारों को व्यक्त करने वाले नवीन धारा के मननशील सजग एवं उत्कृष्टतम कलाकार हैं।
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