लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

Like this Hindi book 0

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

ऐसा प्रतीत होता है कि कबीर के समय में ही या उनके पश्चात् बड़े-बड़े पण्डित, द्विज या सवर्ण हिन्दू भी कबीरपंथ में सम्मिलित हो गये थे। इन कबीरपंथी सवर्णो को दूसरे लोग निश्चय ही चिढ़ाते रहे होंगे कि 'अरे! क्या मुसलमान जुलाहे को अपना गुरु मानते हो?' ऐसे अपमान से बचने तथा अपने गुरु को उच्चकुलोत्पन्न सिद्ध करने के लिए ही सवर्ण कबीर-पंथियों ने कबीर के विधवा ब्राह्मणी के पुत्र होने की किंवदन्ती गढ़ डाली हो और उन्हें नीरू-नीमा का पालित पुत्र घोषित कर दिया हो; पर इतिहासकार या आलोचक को तो प्रत्येक पक्ष को निष्पक्ष रूप से स्वीकार करना होता है। अत: इस युक्ति को स्वीकार करते हुए हमें कबीर को नीरू और नीमा का औरस पुत्र ही मानना चाहिए।

यह भी कहा जाता है कि जब मगहर में उनकी मृत्यु हुई तो हिन्दू और मुसलमानों में उनके शव का दाह-संस्कार करने या दफनाने के सम्बन्ध में झगड़ा हो गया। पर जब शव की चादर को हटाकर देखा गया तो वहाँ से शव के स्थान पर कुछ फूल मिले, जिन्हें आधा-आधा बाँटकर मुसलमानों ने मगहर में दफनाया और हिन्दुओं ने काशी में लाकर उनका दाह-संस्कार किया। उन स्थानों पर बाद में मगहर में मुसलमानों ने मजार और हिन्दुओ ने काशी में 'कबीरचौरा' नामक समाधि बनाई।

इस किंवदन्ती का भी इतना ही अर्थ है कि वास्तव में कबीर मुसलमान थे, अत: उनका शव मगहर ही में दफनाया गया किन्तु उनके हिन्दू भक्तों ने शव के स्थान पर मिले उन पुष्पों को ही लेकर सन्तोष किया और उन पुष्पों को काशी में समाधिस्थ कर 'कबीरचौरा' नामक स्मारक बनाया। अत: यही सिद्ध होता है कि कबीर का जन्म मगहर में नीरू-नीमा नामक मुस्लिम दम्पति के घर में ही हुआ था।

परिवार-कबीर विवाहित थे या अविवाहित, उनके कोई संतान थी या नहीं-ये सभी बातें भी संदिग्ध ही हैं। यद्यपि कोई दृढ़ प्रमाण नहीं मिलता, फिर भी ऐसा माना जाता है कि कबीर विवाहित थे और उनके कमाल और कमाली नामक पुत्र तथा पुत्री भी हुए।

नारी तो हम भी करी, जाना नाँहि विचार।
जब जाना तब परिहरि, नारी बड़ा विकार।।

इस पद से ज्ञात होता है कि वे विवाहित थे। कहा जाता है कि उनकी स्त्री का नाम 'लोई' था।

कहत कबीर सुनो रे लोई,
हरि बिन राखत हमें न कोई।

'लोई' शब्द का प्रयोग अन्य साखियों में भी हुआ है। कुछ विद्वानों का मत है कि 'लोई' उनकी शिष्या थी। अनेक आलोचकों का मत है कि 'लोई' शब्द लोक-अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उनके पुत्र कमाल के सम्बन्ध में भी यह उक्ति प्रसिद्ध है-

बूड़ा  बंस  कबीर  का, उपजा  पूत  कमाल।
हरि का सुमरण छोड़ के, घर ले आया माल।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book