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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

सिद्धराज - इसमें मध्यकालीन शौर्य-गाथा का ओजस्वी वर्णन है। ऐतिहासिक आधारों पर स्थित इस काव्य में तथ्यों की हत्या नहीं की गई।

अनघ - यह काव्य बौद्ध-कथानक को लेकर लिखा गया है। इस पर भी गांधीवाद का प्रभाव स्पष्ट है। बौद्ध-धर्म की अहिंसा और गांधी जी की अहिंसा में स्पष्ट साम्य है। अत: बौद्ध-युग के काव्यों पर गांधीवाद का रंग अनायास ही चढ़ाया जा सकता है।

काबा और कर्बला- यह गुप्तजी की नवीनतम रचनाओं में से है। अब तक गुप्तजी ने हिन्दू, सिक्ख और ईसाई संस्कृतियों की विशेषता को व्यक्त करने वाले अनेक काव्य लिखे थे, किन्तु गांधीजी हिन्दू-मुस्लिम-एकता के बड़े भारी पक्षपाती थे और गुप्तजी गांधीजी के अनन्य अनुयायी। फलत: गांधीजी की भावनाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति देने के लिए 'काबा और कर्बला' नामक काव्य की रचना उन्होंने कर डाली। इसमें मुहम्मद साहब तथा हसन और हुसैन के उदात्त चरित्रों की अवतारणा की गई है।

गुरुकुल- इसमें गुरु नानक से लेकर गुरु गोविन्दसिंह तक के दस गुरुओं की जीवनियाँ तथा उनकी विचारधाराएँ एक-साथ संकलित की गई है। यह रचना बहुत प्रौढ़ नहीं बन पाई।

विकट भट और रंग में भंग-ये दोनों राजपूतकालीन ऐतिहासिक काव्य हैं। इन दोनों में राजपूतों की आन, बान और शान का उत्साहवर्द्धक शब्दों में वर्णन किया गया है।

अर्जन और विसर्जन- इसमें ईसाई-संस्कृति को व्यक्त किया गया है।

गीति-काव्य-झंकार- छायावाद और रहस्यवादात्मक काव्यों के पर्याप्त प्रचलित हो जाने पर गुप्तजी ने भी इस ढंग की कविताएँ या गीत लिखने का प्रयास किया था। 'झंकार' में ऐसे मुक्तक गीतों का संकलन किया गया है जिनकी रचना १९१३ ईसवी के पश्चात् हुई और जिन पर रवि बाबू की 'गीतांजलि' का स्पष्ट प्रभाव है।

मंगल-घट- इसमें 'केशों की कथा 'स्वर्ग-सहोदर' आदि कई कथात्मक कविताएँ तथा अनेक रहस्यात्मक छोटे-छोटे गीत संकलित हैं। साथ ही राष्ट्रीय कविताओं को भी स्थान मिला है।

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