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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

प्रेमाश्रम- कथावस्तु - लाला प्रभाशंकर का भतीजा ज्ञानशंकर अत्यंत स्वार्थी, लालची और ईष्यालु प्रकृति का नवयुवक है। लड़ाई-झगड़े के कारण अंत में ज्ञानशंकर और प्रभाशंकर में सम्पत्ति का बंटवारा हो गया। पत्नी के एकमात्र भाई के मर जाने पर ज्ञानशंकर, ससुराल की सारी सम्पत्ति हथियाने के उद्देश्य से अपने ससुराल लखनऊ पहुँचा। वहाँ उसने अपनी विधवा साली को अपने चक्कर में फँसा लिया पर बाद में वह सावधान हो गई और अपनी जमींदारी पर गोरखपुर को चली गई। अब वह अपने को ससुर राय कमलानन्द की सम्पत्ति का मालिक समझने लगा। रायसाहब एक बड़े विचित्र प्रकृति के प्राणी थे। जब ज्ञानशंकर को यह ज्ञात हुआ कि कमलानन्द दूसरा विवाह कराने वाले हैं तो बहुत घबराया।

मनोहर एक शान्त स्वभाव का किसान था, पर उसके लड़के बलराज में जवानी का जोश था। वह एक दिन लश्कर वालों के अत्याचारों से बहुत अधिक तंग आकर मजिस्ट्रेट ज्वालासिंह के पास पहुंचा और कहने लगा कि आपके चपरासी रियाया पर अत्याचार करते है और बेगार लेते हैं। इस पर ज्वालासिंह ने बेगार लेना बन्द करा दिया। गौसखां नामक कर्मचारी के भड़काने से ज्वालासिंह ने फिर बेगार लेने की आज्ञा दी। इसका विरोध करने पर बलराज से मुचलका ले लिया गया। इतने में ज्ञानशंकर के बड़े भाई प्रेमशंकर जो कई वर्षों से लापता थे, अमेरिका से लौट आये। उन्हें लौटा देखकर ज्ञानशंकर की छाती पर सांप लेट गया, क्योंकि सम्पत्ति का आधा हिस्सा उन्हें देना पड़ता था। प्रभाशंकर ने तो प्रेमशंकर का स्वागत किया. पर ज्ञानशंकर ने आरम्भ से ही उनका विरोध करना शुरू किया। विदेश-यात्रा के पाप का प्रायश्चित करना अस्वीकार करने पर उनकी पत्नी भी उनसे दूर रहने लगी। वे निःस्वार्थ भाव से किसानों के हित में लग गये। इधर कमलानन्द के कहने पर ज्ञानशंकर ने गायत्री देवी के इलाके के सुप्रबन्ध पर एक लेख लिखा जिससे गायत्री देवी को रानी की उपाधि मिल गई। इस पर प्रसन्न होकर उसने ज्ञानशंकर को अपनी स्टेट का मैनेजर बना लिया। गायत्री देवी को रानी की उपाधि देने के लिए गवर्नर के गोरखपुर आने पर ज्ञानशंकर ने एक बहुत बड़ा जलसा किया जिससे सब लोग बहुत प्रसन्न हुए। फिर ज्ञानशंकर ने गायत्री की स्टेट में कृष्णलीला आदि का ढोंग फैलाया और गायत्री को अपने चक्कर में फँसाने का प्रयत्न करने लगा। पर रायसाहब उसकी सब धूर्तता जान गये। इसलिए उन्होंने ज्ञानशंकर को फटकारा, इस पर क्रुद्ध हुए ज्ञानशंकर ने रायसाहब को भोजन में विष दे दिया पर रायसाहब योगी थे, वे विष को भी हजम कर गये। उन्होंने ज्ञानशंकर को उसकी करतूत पर खूब फटकारा। उधर ज्ञानशंकर ने अपने इलाके में लगान बढ़ाना चाहा पर ज्वालासिंह ने इलाके में फैली हुई प्लेग की बीमारी को देखकर लगान बढ़ाने की दरख्वास्त अस्वीकार कर दी। इस पर उसने एक लेख लिखकर ज्वालासिंह को खूब बदनाम किया। ज्ञानशंकर का कारिन्दा गौसखाँ लोगों पर नित्य नये अत्याचार करता। एक दिन मनोहर की स्त्री और बलराज की माँ विलासी को किसी ने धक्का देकर गिरा दिया। इस पर क्रुद्ध हुए मनोहर ने गौसखां का काम तमाम कर दिया और थाने में जाकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया। फिर भी प्रेमशंकर और बलराज आदि गिरफ्तार कर लिये गये। लोगों को तंग किये जाते देख आत्मग्लानि से मनोहर ने आत्महत्या कर ली। प्रेमशंकर जेल से छूटकर जनता को समझाते-बुझाते रहे और 'प्रेमाश्रम' नामक एक संस्था खोलकर जनहित का कार्य करने लगे।

ज्ञानशंकर ने एक बार फिर गायत्री को अपने चंगुल में फँसा लिया। वह उसे कृष्ण मानने लगी। एक बार उन्होंने राधा-कृष्ण का अभिनय भी किया, इसी समय विद्या ने वहाँ आकर दोनों को खूब फटकारा। गायत्री ने अपनी सम्पत्ति ज्ञानशंकर के पुत्र दयाशंकर को दे दी, पर गायत्री और ज्ञानशंकर में एक बार फिर अनबन हो गई। अन्त में ज्ञानशंकर की मानसिक अवस्था बहुत बिगड़ गई और वह गंगा में डूब कर मर गया। मायाशंकर ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति प्रेमाश्रम को दे दी और प्रेमशंकर, ज्वालासिंह आदि सभी प्रेमाश्रम में रहकर जनता की सेवा करने लगे। 

आलोचना- प्रेमाश्रम में किसान, जमींदार, पुलिस, मजिस्ट्रेट आदि ग्रामों से सम्बद्ध सभी वर्गो का सुन्दर चित्र अंकित किया गया है। इसमें सन् १९२० के लगभग होने वाली किसानों की क्रांति का संकेत भी दिया गया है। बलराज ने इस क्रांति का एक प्रकार से नेतृत्व किया है। प्रेमशंकर इस क्रांति के समर्थक हैं। और वह क्रियात्मक कार्य के पक्षपाती हैं।

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