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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


एक दिवस शुन:शेफ दौड़ विश्वामित्र के चरण में लिपट गया। जिज्ञासा करने पर ज्ञात हुआ कि वह महाराज हरिश्चन्द्र के यज्ञ का यज्ञ-पशु बनाकर बलि दिया जायगा। उद्दण्ड राजर्षि को कुछ दया आई, और वह अपने शत पुत्रों में से एक को उसके प्रत्यावर्तन में देने के हेतु सन्नद्ध हुए। पुत्रगण ने आज्ञा न मानी। वे भी शापित तथा निर्वासित हुए। भगवान् इन्द्र प्रसन्न हुए। महाराज हरिश्चन्द्र को बिना नरबलि किये ही यज्ञ-फल मिला, और विश्वामित्र ‘राजर्षि’ कहलाने लगे। किन्तु, वे ब्रह्मबल-लाभ की आशा में फिर तपस्या और निराहार-भूखों को अन्नदान करने लगे।

बहुत दिनों तक स्वयं निराहार रहकर वे भूखों को अन्नदान करते रहे। जिस दिन उनका वक्त पूर्ण हुआ और उन्होंने पाक बनाया, भोजन के समय में एक भूखा ब्राह्मण आया। विश्वामित्र ने अपने व्रत का कुछ भी ध्यान न किया, और सिद्धान्न ब्राह्मण को खिला दिया।

ब्राह्मण ने प्रसन्न होकर कहा- ”महर्षि, तुम बड़े दयामय हो।”

सौ पुत्रों को खोकर, और निराहार पर भी निराहार कर के विश्वामित्र ने ‘महर्षि’ पद को प्राप्त किया। किन्तु, उन्हें शान्ति न मिली। वशिष्ठ की ईर्ष्या से वे सदा ईर्षित रहते थे, और उसी ईर्षाग्नि में जलित उस ब्रह्मबल की आशा ने अभी उनकी एक परीक्षा और ली।

शर्वरीनाथ रमणी से पूर्ण कलायुक्त क्रीड़ा कर रहे हैं। राका प्रकाशमयी, प्रभामयी तथा आनन्दमयी प्रकृति का रूप धारण किये हुए है। बहुत दूर पर से कोकिल की मनोहर वाणी कभी शान्तिमयी राका की निस्तब्धता को भंग कर देती है। समीरण भी अपना सरल रूप धारण किये है। पत्रों का मर्मर रव कभी-कभी सुनाई पड़ता है। भगवान् वशिष्ठ के आश्रम में शान्ति, रूपमयी होकर खेल रही है।

देवकल्प वशिष्ठजी और उनकी पत्नी अरुधन्ती कुटीर-समीपस्थ एक शुभ शिला-तल पर बैठ, कथनोपकथन कर रहे हैं।

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