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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ

29. भीख में

खपरल दालान में, कम्बल पर मिन्ना के साथ बैठा हुआ ब्रजराज मन लगाकर बातें कर रहा था। सामने ताल में कमल खिल रहे थे। उस पर से भीनी-भीनी महक लिये हुए पवन धीरे-धीरे उस झोपड़ी में आता और चला जाता था।

“माँ कहती थी ...”, मिन्ना ने कमल की केसरों को बिखराते हुए कहा।

“क्या कहती थी?”

“बाबूजी परदेश जायँगे। तेरे लिये नैपाली टट्टू लायँगे।”

“तू घोड़े पर चढ़ेगा कि टट्टू पर! पागल कहीं का।”

“नहीं, मैं टट्टू पर चढ़ूंगा। वह गिरता नहीं।”

“तो फिर मैं नहीं जाऊँगा?”

“क्यों नहीं जाओगे? ऊँ-ऊँ-ऊँ, मैं अब रोता हूँ।”

“अच्छा, पहले यह बताओ कि जब तुम कमाने लगोगे, तो हमारे लिए क्या लाओगे?”

“खूब ढेर-सा रुपया”- कहकर मिन्ना ने अपना छोटा-सा हाथ जितना ऊँचा हो सकता था, उठा लिया।

“सब रुपया मुझको ही दोगे न!”

“नहीं, माँ को भी दूँगा।”

“मुझको कितना दोगे?”

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