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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


“नहीं, यहाँ कोई रक्षक नहीं है।”

“आज तुमने कौन-सी माला बनाई है?”

“यही कामिनी की माला बना रही थी।”

“तुम्हारा नाम क्या है?”

“कामिनी।”

“वाह! अच्छा, तुम इस माला को पूरी करो, मैं लौटकर-उसे लूँगा।” डरने पर भी मालिन ढीठ थी। उसने कहा-”धूप निकल आने पर कामिनी का सौरभ कम हो जायगा।”

“मैं शीघ्र आऊँगा”-कहकर राजकुमार चले गये।

मालिन ने माला बना डाली। किरणें प्रतीक्षा में लाल-पीली होकर धवल हो चलीं। राजकुमार लौटकर नहीं आये। तब उसी ओर चली-जिधर राजकुमार गये थे।

युवती बहुत दूर न गई होगी कि राजकुमार लौटकर दूसरे मार्ग से उसी स्थान पर आये। मालिन को न देखकर पुकारने लगे-”मालिन! ओ मालिन!”

दूरागत कोकिल की पुकार-सा वह स्वर उसके कान में पड़ा था। वह लौट आई। हाथों में कामिनी की माला लिये वह वन-लक्ष्मी के समान लौटी। राजकुमार उसी दिन-सौन्दर्य को सकुतूहल देख रहे थे। कामिनी ने माला गले में पहना दी। राजकुमार ने अपना कौशेय उष्णीश खोलकर मालिन के ऊपर फेंक दिया। कहा-”जाओ, इसे पहनकर आओ।” आश्चर्य और भय से लताओं की झुरमुट में जाकर उसने आज्ञानुसार कौशेय वसन पहना।

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