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काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन

।। श्री राम: शरणं मम।।

 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

हृदय विराजत रामसिय और दास हनुमान।
ऐसे श्री गुरुदेव को बारम्बार प्रणाम।।


रामचरितमानस के प्रति प्रेम और आस्था के संस्कार हमारे परिवार में मेरे दादा श्री विट्ठलदास बालजी गणात्रा से मिला। पर मानस को रक्त में मिलाकर जीवन को अमृतमय बनाने का कार्य मेरे परम पूज्य सद्गुरुदेव रामायणमय वाणी के पर्याय श्रीरामकिंकरजी महाराज ने किया।

परम पूज्य श्री रामकिंकर महाराज का एक ग्रन्थ पढते ही मुझे लगा कि जो मेरे पास नहीं है वह मानो मिल गया, अंधकार से प्रकाश हो गया, घुटन के बाद हवा मिल गयी और संसार से विष के बदले अमृत मिलने लगा। सबसे पहले मैंने उनको लन्दन से मुम्बई आकर ''बिरला मातुश्री सभागृह' में अपने बड़े भाई के साथ सुना। ऐसा सुदर्शन उनका दर्शन, ऐसा अमृतमय उनका वचन, ऐसी गम्भीर उनकी वाणी, अद्वितीय प्रस्तुतीकरण उस समय मुझे वे ही वे दिख रहे थे। हम जिस होटल में ठहरे थे, कृपापूर्वक हमलोगों के कहने पर वे वहाँ पर पधारे और हमने उन्हें हनुमानचालीसा, नवधा-भक्ति तथा श्रीमद्भगवद्गीता का बारहवाँ अध्याय ''भक्ति-योग'' सुनाया।

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