लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> काम

काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

Like this Hindi book 0

मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन

।। श्री राम: शरणं मम।।

 

काम

'काम' शब्द बड़ा अनोखा है और इस शब्द को लेकर अनेक 'मत' और 'अर्थ' हमारे सामने आते हैं। परम्परा तो काम की निन्दा की गयी है पर यदि हम गहराई से दृष्टि डालें तो देखते हैं कि रामचरितमानस तथा हमारे अन्य धर्मग्रन्थों में काम की प्रवृत्ति और उसके स्वरूप का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, वह बड़ा ही गंभीर है। यदि हम विचार करके देखें तो यहाँ उपस्थित हम-सब एवं सम्पूर्ण समाज के मूल में ईश्वर तो है ही, पर संसार के निर्माण में हमें काम की वृत्ति ही दिखायी देती है। काम की वृत्ति के विविध पक्ष हैं। काम क्या दुष्ट वृत्ति ही है? क्या वह 'खल' और निन्दनीय है? जैसा कि 'मानस और अन्य ग्रन्थों में, अनेकानेक स्थलों में उसके बारे में वर्णन करते हुए कहा गया है। निःसंदेह, काम का एक पक्ष यह भी है। पर हम देखते हैं कि काम, सृष्टि के सृजन और विस्तार में सहायक तो है ही, मनुष्य के अंतःकरण में जो आनंद और रस की पिपासा है, उसकी अनुभूति का मानो एक साकार रूप भी है। इससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि काम निंदनीय ही नहीं, वंदनीय भी है। इसलिए यदि किसी प्रसंग-विशेष में काम की निंदा की गयी है तो उसका एक उद्देश्य है और उसी प्रकार उसकी प्रशंसा के पीछे भी एक निहित उद्देश्य ही उसका कारण है।

जिन तीन विकारों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है वे हैं- 'काम, क्रोध और लोभ'। आप देखेंगे कि कि उनमें से 'क्रोध' और 'लोभ' से जुड़ा हुआ नाम रखना लोग पसंद नहीं करते। किसी का नाम लोभचन्द्र या लोभशर्मा यह सुनने को नहीं मिलता। इसी तरह क्रोध या उसके समानार्थी शब्दों से संयुक्त नाम भी नहीं सुने जाते। पर 'काम' शब्द इतना लोकप्रिय है कि इससे जुड़े हुए नाम रखने में कोई संकोच नहीं दिखायी देता। 'काम' या उसके पर्यायवाची शब्दों के नाम वाले अनेकानेक व्यक्ति समाज में मिलते हैं। मदनमोहन, मदनलाल, मनोज आदि नाम बहु-प्रचलित हैं। इसका अर्थ है कि 'काम' की अच्छाई-बुराई और उसकी आवश्यकता एवं उपयोगिता पर गहराई से विचार किया जाना चाहिये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book