लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> लोभ, दान व दया

लोभ, दान व दया

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9814

Like this Hindi book 0

मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन

।। श्री राम: शरणं मम।।

दान व दया

'काम' और 'क्रोध' के बाद जिस प्रमुख विकार की निन्दा की गयी है, उस क्रम में तीसरे विकार के रूप में 'लोभ' नाम आता है। 'मानस' के अरण्यकाण्ड में भगवान् राम लक्ष्मणजी से यही कहते हैं कि 'लक्ष्मण! वैसे तो समस्त दुर्गुण मनुष्य के जीवन में दुःख और अकल्याण की सृष्टि करते हैं, पर इनमें भी तीन दुष्ट वृत्तियाँ - काम, क्रोध और लोभ प्रमुख हैं-
तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ।
मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ।। 3/38क

भगवान् कृष्ण भी गीता में इन तीनों विकारों के विषय में यही कहते हैं कि --
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।। गीता 17/21

हे अर्जुन! काम, क्रोध और लोभ ये तीन प्रकार के नरक के द्वार, आत्मा का नाश करने वाले हैं, अर्थात् अधोगति को ले जाने वाले हैं, इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिये।

पिछले प्रसंगों में 'काम' और 'क्रोध' की चर्चा जिस रूप में की गयी थी, उससे कुछ भिन्न रूप में 'लोभ' को 'दान' के साथ सामंजस्यपूर्वक रखकर देखना ही उचित होगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book