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धर्म एवं दर्शन >> लोभ, दान व दया

लोभ, दान व दया

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9814

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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


रामायण के अनेक प्रसगों में तथा विनय-पत्रिका में भी इसे अनेक संकेतों के द्वारा प्रस्तुत किया गया। विनय-पत्रिका के एक पद में गोस्वामीजी ने यह कहा कि हमारे जीवन में तीन अवतारों की आवश्यकता है। क्यों आवश्यकता है? इसे बताते हुए वे तीनों अवतारों से जुड़े तीन दृष्टान्त देते हैं।''

पुराणों में एक कथा आती है कि हाथियों का एक झुण्ड पानी पीने के लिये एक विशाल सरोवर की ओर जा रहा था। हाथी समूह में रहने के ही अभ्यस्त होते हैं। यही देखा जाता है कि ये समूह में रहने में ही ठीक रहते हैं। जो हाथी समूह से अलग हो जाता है वह बहुत भयावह हो जाता है। ऐसे अकेले हाथी को 'इक्कड़' कहा जाता है। वह इतना खूँखार हो जाता है कि जिस क्षेत्र में इक्कड़ हाथी के होने की बात कही जाती है उस मार्ग से लोगों व सवारियों का आना-जाना तक बंद हो जाता है। आसाम में मैं प्रवास पर था तो एक स्थान पर सब गाड़ियों को रोक दिया गया। पूछने पर पता चला कि आगे जाने में खतरा है क्योंकि उधर इक्कड़ हाथी देखा गया है।

गोस्वामीजी कहते हैं कि हाथी समूह में जल पीने गये और सरोवर पर जाकर प्रसन्नता से जल पीने लगे, विहार-किल्लोल करने लगे। उस सरोवर में एक ग्राह (मगर) भी रहता था। उस मगर ने उन हाथियों के समूह के अधिपति का पैर पकड़ लिया और उसे जल में भीतर खींचने लगा। हाथी, वैसे तो जमीन पर बड़ा सामर्थ्यवान् होता है पर जल में उसकी शक्ति काम नहीं कर पाती। उसके समूह के अन्य हाथियों ने उसकी पूँछ पकड़कर उसे बाहर खींचने की चेष्टा की पर वे सफल नहीं हो सके। वह हाथी गहरे पानी की दिशा में खिंचता तला गया। साथी हाथी कहीं हम भी न डूब जायँ, ऐसा सोचकर डर गये और उसे छोड़कर अलग हो गये। उस हाथी ने जब देख लिया कि न तो उसमें सामर्थ्य है और न ही कोई सहायक है तो वह भगवान् से प्रार्थना करता है। उसने उस सरोवर से एक कमल का फूल तोड़ लिया और नारायण को सहायता के लिये पुकारने लगा। भगवान् आये और उन्होंने ग्राह का वध करके उस गज का उद्धार किया। श्रीमद्भागवत पुराण में यह प्रसंग आता है और 'गजेन्द्र-मोक्ष' के नाम से प्रसिद्ध है। यदि किसी पर बहुत अधिक ऋण हो जाय तो उसे ऋणमुक्त होने के लिये इस प्रसंग के पाठ करने की सलाह दी जाती है। यह एक आस्तिक-परम्परा है।

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