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धर्म एवं दर्शन >> परशुराम संवाद

परशुराम संवाद

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :35
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9819

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रामचरितमानस के लक्ष्मण-परशुराम संवाद का वर्णन


बन्दरों ने पूछा कि आप उन मुकुटों को अपने सिर पर रख लेते या चारों को सुरक्षित रख लेते तथा अदल-बदल करके लगाया करते। अंगद ने कहा कि रावण के सिरों पर जब मुकुट टिक नहीं पाये तो मेरे सिर पर भी नहीं टिकेंगे। इनको तो भगवान् के चरणों में ही भेज देना चाहिए। सत्ता को सिर पर धारण करेंगे तो बोझ बनेगा और अगर चरण में रखेंगे तो मानो बोझ उतार दिया और बोझ उतारने में भी मैंने देरी नहीं की। बड़ा सौभाग्य है इन मुकुटों का कि इतने दिन कुसंग में रहने के बाद भी अन्त में भगवान् के चरणों में जाने की व्यग्रता इनके मन में आ गया और जो प्रभु की शरण में जा रहा है, उसमें विलम्ब नहीं होना चाहिए। मुझे लगा कि इन मुकुटों में इतनी व्यग्रता है कि ये मुझसे भी पहले प्रभु की सेवा में पहुँचना चाहते हैं। जब मुकुटों को आते देखा तो बन्दरों को ऐसा लगा कि मानो रावण ने चार तेजोमय बाण हम लोगों को मारने के लिए भेजे हैं। प्रभु ने कहा कि डरो मत, इनको अंगद ने भेजा है। तब हनुमान् जी ने छलांग लगायी –
तरकि पवनसुत कर गहे आनि धरे प्रभु पास। 6/22 क

अंगद ने अपने आने के पहले ही मुकुटों को भेज दिया और हनुमान् जी ने भी अनोखा काम किया। मुकुट तो नीचे आ ही रहे थे, फिर हनुमान् जी को ऐसा क्या था कि वे उछल गये? हनुमान् जी ने कहा कि अंगद ने जिनको भेजा है यदि वे फिर जायँ तो इससे बुरी बात क्या होगी? जो प्रभु के पास आना चाहता है, उसको तो आदरपूर्वक प्रभु के चरणों में पहुँचना चाहिए। भगवान् कहते हैं कि –
    ए  किरीट दसकंधर  केरे।
    आवत बालितनय के प्रेरे।। 6/31/10

यहाँ पर ‘प्रेरे’ शब्द कहा गया अर्थात् अंगद की प्रेरणा से आ रहे हैं। अंगद के फेंके हुए हैं ऐसा नहीं कहा। अभिप्राय है कि जो प्रभु की ओर आ रहा है, वह तो चेतन है, जड़ कैसे हो सकता है? उसने तो प्रेरणा को ग्रहण किया। इस तरह से अंगद ने जीवन के दो सत्य को रावण के सामने रखने की चेष्टा की कि क्या चल रहा है? और अचल क्या है? यही जान लेना चाहिए। रावण को बता दिया कि तुम्हारा पद चल है और चल पदार्थ के प्रति तुम्हारी आसक्ति ठीक नहीं है। अंगद ने पद रोपकर उसे अचल बनाकर दिखा दिया कि तुम प्रत्यक्ष रूप से देखो कि लंकेश होते हुए भी तुम्हारा पद चल दो गया और मैं बन्दर हूँ, उसका पैर जो चंचल होता है, वह अचल हो गया और इसीलिए अचल हो गया कि जो हनुमान् जी ने कहा था उसको प्रत्यक्ष रूप से देख लो। हनुमान् जी ने कहा था कि –
    राम  चरन  पंकज  उर  धरहू।
    लंका अचल राजु तुम्ह करहू।। 5/22/1

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