धर्म एवं दर्शन >> प्रसाद प्रसादरामकिंकर जी महाराज
|
0 |
प्रसाद का तात्विक विवेचन
प्रभु के चरणों में प्रणाम करके वस्तु को निवेदित करना और तब ग्रहण करना प्रसाद है। यह सूत्र केवल हनुमान्जी के लिए ही नहीं है, हम सबके लिए है। रावण की वाटिका के जो फल हैं-रावण की वाटिका को आप चाहे जितने गहरे अर्थों में ले सकते हैं। इस संसार को भी आप वाटिका कह सकते हैं, वन भी कह सकते हैं। 'विनय-पत्रिका' में कहा है-
संसार-कातार अति घोर, गंभीर,
घन गहन तरुकर्मसंकुल, मुरारी। -विनय-पत्रिका, 5/2
तो व्यक्ति भूखा भी है और उसको ऐसा भी प्रतीत होता है कि संसार में भूख मिटाने के साधन भी हैं। यह भूख चाहे शरीर के सन्दर्भ में हो, चाहे मन के सन्दर्भ में हो, चाहे बुद्धि के सन्दर्भ में हो। ये तीन प्रकार की भूख हैं। शरीर की भूख का कितना महत्त्व है? इसका अनुभव हम सभी को रोज होता है, परन्तु केवल शरीर से ही नहीं, मनुष्य मन और बुद्धि से भी भूखा है और जैसे भूख लगने पर भोजन मिले और वह भोजन भी स्वास्थ्य के लिए अनुकूल हो तो उस भोजन में क्या विशेषता होनी चाहिए? एक तो भोजन को मुँह में लेने पर उसमें स्वाद का अनुभव होना चाहिए। दूसरे उस भोजन से आपकी भूख मिटेगी और तीसरी बात यह है कि भूख मिटने के बाद भी उससे निर्मित रक्त आपके शरीर में शक्ति का संचार करेगा।
एक बड़ी कठिन समस्या है कि हमको ऐसा लगता है कि हमारी भूख और प्यास को मिटाने का एकमात्र उपाय यह है कि हम संसार के विषयों को स्वीकार करें। ऐसा करने पर ऐसा लगता है कि कुछ समय के लिए भूख मिट गयी, किन्तु इससे जीवन में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। कसौटी यही है कि जो भोजन हमने किया उसमें यदि केवल स्वाद का अनुभव हुआ और पलभर के लिए भूख मिट गयी और उसके बाद शरीर रोगी हो गया तो ऐसा भोजन तो सर्वथा त्याज्य है। विषयों के साथ यह समस्या जुड़ी हुई है।
|