लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत

प्रेममूर्ति भरत

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :349
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9822

Like this Hindi book 0

भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन


वायुदेव भी त्रिबिध गुणों से युक्त हो मधुर, शीलत, सौरभ पूरित विजन डुलाकर थकान मिटाने की चेष्टा कर रहे हैं। सम्भव है सोचा हो कि मेरा पुत्र तो प्रभु के पावन चरणों की सेवा करके अपने को धन्य करेगा ही, मैं ही पीछे क्यों रहूँ? अहा ! भरत की सेवा से मैं शीलत हुआ, उनके पावन अंग के संस्पर्श से आज मैं वास्तव में सुरभित हुआ।

बहत समीर त्रिबिध सुख लीन्हे।।

आज देवता अपने कृत्य से लज्जित हो पुष्प-वृष्टि द्वारा उनका मार्ग और भी सुखद बना देना चाहते हैं। मेघ छत्र बनकर छाया कर रहे हैं। सघन वन की पादप पंक्तियाँ फल-फूलों से भर उठीं। वे कुसुम फल भार से झुककर मार्ग के दोनों किनारों से मिलकर तोरण सजाए स्वागत कर रही हैं। झुकी हुई लताएँ पवन के हिलोरे में उनके सुकुमार शरीर का स्पर्श कर लेती हैं। कहीं-कहीं तो श्री भरत को अपनी विशाल भुजाओं से उन्हें बिलगाते हुए मार्ग बनाना पड़ता है। उस समय लता-बल्लरियों की स्थिति अवर्णनीय हो जाती है, पुलक से अंग-अंग फूल उठते हैं, तृन भी किसी से पीछे क्यों रहें? वे भी मंगलमय श्री चरणों को मृदुता से चूम लेते हैं। मृग समूह समीप एकत्र हो अपने विशाल नेत्रों से उस रूप-सुधा का पान कर रहे हैं। तो पक्षियों में होड़-सी लग रही है। कहीं कोकिल कमनीय कण्ठ से कुहू-कुहू कर उनका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। तो कहीं पपीहा पियु-पियु पुकार उठता है। मयूर के अंग-अंग थिरक उठते हैं। सबके हृदय में उत्कण्ठा है, प्रसन्नता है, स्वागत में स्पर्धा है। प्राणप्रिय पाहुने जो हैं, उनके ही नहीं, हृदयेश्वर तरुण तमाल वर्ण राघव के भी–

सुमन बरषि सुर घन करि छाहीं।
बिटप फूलि फलि तन मृदुताहीं।।
मृग बिलोकि खग बोलि सुबानी।
सेवहिं  सकल राम प्रिय जानी।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book