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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस सूक्ष्म भेद को समझाने के लिए मुझे कुछ तथ्यों की जानकारी देनी होगी।

इन दो-तीन दिनों में ही मैंने देख लिया था कि हिन्दुस्तानी अफ्रीका में अपने-अपने गुट बनाकर बैठ गये थे। एक भाग मुसलमा व्यापारियों का था, वे अपने को 'अरब' कहते थे। दूसरा भाग हिन्दु या पारसी कारकुनों, मुनीमों या गुमाश्तो का था। हिन्दू कारकून अधर में लटकते थे। कोई अरब में मिल जाते थे। पारसी अपना नाम परसियन के नाम से देते थे। व्यापार के अलावा भी इन तीनों का आपस में थोड़ा-बहुत सम्बन्ध अवश्य था। एक चौथा और बड़ा समुदाय तामिल, तेलुगु और उत्तर हिन्दुस्तान के गिरमिटिया तथा गिरमिट-मुक्त हिन्दुस्तानियों का था। गिरमिट का अर्थ हैं वह इकरार यानि 'एग्रिमेण्ट', जिसके अनुसार उन दिनों गरीब हिन्दुस्तानी पाँच साल तक मजदूरी करने के लिए नेटाल जाते थे। गिरमिट एग्रिमेण्ट' का अपभ्रंश हैं और उसी से गिरमिटिया शब्द बना हैं। इस वर्ग के साथ दूसरा का व्यवहार केवल काम की दृष्टि से ही रहता था। अंग्रेज इन गिरमिटवालों को 'कुली' के नाम से पहचानते थे, और चूंकि वे संख्या में अधिक थे, इसलिए दूसरे हिन्दुस्तानियों को भी कुली कहते थे। कुली के बदले 'सामी' भी कहते थे। सामी ज्यादातर तामिल नामों के अन्त में लगने वाला प्रत्यय हैं। सामी अर्थात स्वामी। स्वामी का मतलब तो मालिक हुआ। इसलिए जब कोई हिन्दुस्तानी सामी शब्द से चिढ़ता और उसमें कुछ हिम्मत होती तो वह अपने को 'सामी' कहने वाले अंग्रेज से कहता, 'तुम मुझे सामी कहते हो, पर जानते हो कि सामी का मतलब होता हैं? मैं तुम्हारा मालिक तो हूँ नहीं।' यह सुनकर कोई अंग्रेज शरमा जाता, कोई चिढ़ कर ज्यादा गालियाँ देता और कोई-कोई मारता भी सही ; क्योंकि उसकी दृष्टि से तो 'सामी' शब्द निन्दासूचक ही हो सकता था। उसका अर्थ मालिक करना तो उसे अपमानित करने के बराबर ही हो सकता था।

इसलिए मैं 'कुली बारिस्टर' कहलाया। व्यापारी 'कुली व्यापारी' कहलाते थे। कुली का मूल अर्थ मजदूर तो भुला दिया गया। मुसलमान व्यापारी यह शब्द सुनकर गुस्सा होता और कहता, 'मैं कुली नहीं हूँ। मैं तो अरब हूँ।' अथवा 'मैं व्यापारी हूँ।' थोडा विनयशील अंग्रेज होता तो यह सुनकर माफी भी माँग लेता।

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