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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


यह दलील मेरे गले बिल्कुल न उतरी। मैंने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, 'यदि सर्वमान्य ईसाई धर्म यही हैं, तो वह मेरे काम का नहीं हैं। मैं तो पाप-वृति से, पापकर्म से मुक्ति चाहता हूँ। जब तर वह मुक्ति नहीं मिलती, तब तक अपनी यह अशान्ति मुझे प्रिय रहेगी।'

प्लीमथ ब्रदर ने उत्तर दिया, 'मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपका प्रयत्न व्यर्थ हैं। मेरी बात पर आप फिर सोचियेगा।'

औऱ इन भाई ने जैसा कहा वैसा अपने व्यवहार द्वारा करके भी दिखा दिया, जान बूझकर अनीति कर दिखायी।

पर सब ईसाईयो की ऐसी मान्यता नहीं होती, यह तो मैं इन परिचयो से पहले ही जान चुका था। मि. कोट्स स्वयं ही पाप से डरकर चलनेवाले थे। उनका हृदय निर्मल था। वे हृदय शुद्धि की शक्यका में विशवास रखते थे। उक्त बहने भी वैसी ही थी। मेरे हाथ पड़ने वाली पुस्तको में से कई भक्तिपूर्ण थी। अतएव इस परिचय से मि. कोट्स को जो धबराहट हुई उसे मैंने शांत किया औऱ उन्हे विश्वास दिलाया कि एक प्लीमथ ब्रदर की अनुचित धारणा के कारण मैं ईसाई धर्म के बारे में गलत राय नहीं बना सकता। मेरी कठिनाईयाँ तो बाइबल के बारे में और उसके गूढ अर्थ के बारे में थी।

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