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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

नेटाल में बस गया


सन् 1893 में सेठ हाजी मुहम्मद हाजी दादा नेटान के हिन्दुस्तानी समाज के अग्रगण्य नेता माने जाते थे। साम्पत्तिक स्थिति में सेठ अब्दुल्ला हाजी आदम मुख्य थे, पर वे और दूसरे लोद भी सार्वजनिक कामों में सेठ हाजी मुहम्मद को ही पहला स्थान देते थे। अतएव उनके सभापतित्व में अब्दुल्ला सेठ के घर एक सभा हुई। उसमें फ्रेंजाइज़ बिल का विरोध करने का निश्चय किया गया। स्वयंसेवकों के नाम लिखे गये। इस सभा में नेटाल में पैदा हुए हिन्दुस्तानियों को अर्थात् ईसाई नौजवानों को इकट्ठा किया गया था। मि. पॉल डरबन की अदालत में दुभाषिये थे। मि. सुभान गॉडफ्रे मिशन के स्कूल के हेडमास्टर थे। वे भी सभा में उपस्थित रहे थे और उनके प्रभाव से उस समाज के नौजवान अच्छी संख्या में आये थे। ये सब स्वयंसेवक बन गये। व्यापारी तो अधिकतर थे ही। उनमे से जानने योग्य नाम हैं, सेठ दाऊद मुहम्मद, मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन, सेठ आदमजी मियांखान, ए. कोलन्दावेल्लू पिल्ले, सी. लच्छीराम, रंगस्वामी पड़ियाची, आमद जीवा आदि। पारसी रुस्तमजी तो थे ही। कारकून-समाज में से पारसी माणेकजी, जोशी, नरसीराम वगैरा दादा अब्दुल्ला इत्यादि बड़ी फर्मों के नौकर थे। इन सबको सार्वजनिक काम में सम्मिलित होने का आश्चर्य हुआ। इस प्रकार सार्वजनिक काम के लिए न्योते जाने और उसमें हाथ बटाने का उनका यह पहला अनुभव था। उपस्थित संकट के सामने नीच-ऊँच, छोटे-बडे, मालिक-नौकर, हिन्दू-मूसलमान, पारसी, ईसाई, गुजराती, मद्रासी, सिन्धी आदि भेद समाप्त हो चुके थे। सब भारत की सन्तान और सेवक थे।

बिल का दूसरा बाचन हो चुका था। उस समय धारासभा में कियें गये भाषणों में यह टीका थी कि इतने कठोर कानून का भी हिन्दुस्तानियों की ओर से कोई विरोध नहीं हो रहा हैं, यह हिन्दुस्तानी समाज की लापरवाही का और मताधिकार का उपयोग करने की उनकी अयोग्यता का प्रमाण है।

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