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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


अर्जी गयी। उसकी एक हजार प्रतियाँ छपवायी थी। उस अर्जी के कारण हिन्दुस्तान के आम लोगों को नेटाल का पहली बार परिचय हुआ। मैं जितने अखवारो और सार्वजनिक नेताओं के नाम जानता था उतनो को अर्जी की प्रतियाँ भेजी।

'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने उस पर अग्रलेख लिखा और हिन्दुस्तानियो की माँग का अच्छा समर्थन किया। विलायत में भी अर्जी की प्रतियाँ सब पक्षों के नेताओं को भेजी गयी थी। वहाँ लंदन के 'टाइम्स' का समर्थन प्राप्त हुआ। इससे आशा बँधी कि बिल मंजूर न हो सकेगा।

अब मैं नेटाल छोड़ सकूँ ऐसी मेरी स्थिति नहीं रही। लोगों ने मुझे चारो तरफ से घेर लिया और नेटाल में ही स्थायी रुप से रहने का अत्यन्त आग्रह किया। मैंने अपनी कठिनाईयाँ बतायी। मैंने अपने मन में निश्चय कर लिया था कि मुझे सार्वजनिक खर्च पर नहीं रहना चाहिये। मुझे अलग घर बसाने की आवश्यकता जान पड़ी। उस समय मैंने यह माना था कि घर अच्छा और अच्छी बस्ती में लेना चाहिये।

मैंने सोचा कि दूसरे बारिस्टर की तरह मेरे रहने से हिन्दुस्तानी समाज की इज्जत बढेगी। मुझे लगा ऐसा घर मैं साल में 300 पौंड के खर्च के बिना चला ही न सकूँगा। मैंने निश्चय किया कि इतनी रकम की वकालत की गारंटी मिलने पर ही मैं रह सकता हूँ, और वहाँ वालो को इसकी सूचना दे दी।

साथियो ने दलील देते हुए कहा, 'पर इतनी रकम आप सार्वजनिक काम के लिए ले, यह हमे पुसा सकता हैं, और इसे इकट्ठा करना हमारे लिए आसान हैं। वकालत करते हुए आपको जो मिले, सो आपका।'

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