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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


पर माता? वह बेचारी दुखी हुई। मैं चता। चुप्पी साध गया। मैंने चर्चा का विषय बदल दिया।

दूसरे हफ्ते सावधान रहकर मैं उनके यहाँ गया तो सही, पर मेरे पाँव भारी हो गये थे। मुझे यह न सूझा कि मैं खुद ही वहाँ जाना बन्द कर दूँ और न ऐसा करना उचित जान पड़ा। पर उस भली बहन ने मेरी कठिनाई दूर कर दी। वे बोली, 'मि. गाँधी, आप बुरा न मानियेगा, पर मुझे आप से कहना चाहिये कि मेरे बालक पर आपकी सोहब्बत का बुरा असर होने लगा हैं। अब रोज माँस खाने में आनाकानी करता हैं। और आपकी उस चर्चा का याद दिलाकर फल माँगता हैं। मुझसे यह न निभ सकेगा। मेरा बच्चा माँसाहार छोडने से बीमार चाहे न पड़े, पर कमजोर तो हो ही जायेगा। इसे मैं कैसे सह सकती हूँ? आप जो चर्चा करते हैं, वह हम सयानो के बीच शोभा दे सकती हैं। लेकिन बालको पर तो उसका बुरा ही असर हो सकता हैं।'

'मिसेज... मुझे दुःख है। माता के नाते मैं आपकी भावना को समझ सकता हूँ। मेरे भी बच्चे हैं। इस आपत्ति का अन्त सरलता से हो सकता हैं। मेरे बोलने का जो असर होगा, उसकी अपेक्षा मैं जो खाता हूँ या नहीं खाता हूँ, उसे देखने का असर बालक पर बहुत अधिक होगा। इसलिए अच्छा रास्ता तो यह है कि अब से आगे मैं रविवार को आपके यहाँ न आऊँ। इससे हमारी मित्रता में कोई बाधा न पहुँचेगी।'

बहन में प्रसन्न होकर उत्तर दिया, 'मैं आपका आभार मानती हूँ।'

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