लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


'तुम्हारे बाल ऐसे क्यों हो गये है? सिर पर चुहे तो नहीं चढ गये थे?'

मैंने कहा, 'जी नहीं, मेरे काले सिर को गोरा हज्जाम कैसे छू सकता हैं? इसलिए कैसे भी क्यों न हो, अपने हाथ से काटे हुए बाल मुझे अधिक प्रिय है।'

इस उत्तर में मित्रो को आश्चर्य नहीं हुआ। असल में उस हज्जाम का कोई दोष न था। अगर वह काली चमड़ीवालो के बाल काटने लगता तो उसकी रोजी मारी जाती। हम भी अपने अछूतो के बाल ऊँची जाति के हिन्दूओ के हज्जाम को कहाँ काटने देते हैं? दक्षिण अफ्रीका में मुझे इसका बदला एक नहीं स बल्कि अनेको बार मिला हैं, और चूकि मैं यह मानता था कि यह हमारे दोष का परिणाम है, इसलिए मुझे इस बात से कभी गुस्सा नहीं आया।

स्वावल्बन और सादगी के मेरे शौक ने आगे चलकर जो तीव्र स्वरुप धारण किया उसका वर्णन यथास्थान होगा। इस चीज का जड़ को मेरे अन्दर शुरू से ही थी। उसके फूलने-फलने के लिए केवल सिंचाई की आवश्यकता थी। वह सिंचाई अनायास ही मिल गयी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book