लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


हमारे छोटे-से काम की उस समय तो बडी स्तुति हुई। इससे हिन्दुस्तानियो की प्रतिष्ठा बड़ी। 'आखिर हिन्दुस्तानी साम्राज्य के वारिस तो है ही ' इस आशय के गीत गाये। जनरल बुलर ने अपने खरीते में हमारी टुकड़ी के काम की तारीफ की। मुखियो को युद्ध के पदक भी मिले।

इससे हिन्दुस्तानी कौम अधिक संगठित हो गयी। मैं गिरमिटिया हिन्दुस्तानियो के अधिक सम्पर्क में आ सका। उनमें अधिक जागृति आयी। और हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, मद्रासी, गुजराती, सिन्धी सब हिन्दुस्तानी है, यह भावना अधिक ढृढ हुई। सबने माना कि अब हिन्दुस्तानियो के दुःख दूर होने ही चाहिये। उस समय तो गोरो के व्यवहार में भी स्पष्ट परिवर्तन दिखायी दिया।

लड़ाई में गोरो के साथ जो सम्पर्क हुआ वह मधुर था। हमें हजारों टॉमियो के साथ रहने का मौका मिला। वे हमारे साथ मित्रता का व्यवहार करते थे, और यह जानकर कि हम उनकी सेवा के लिए आये है, हमारा उपकार मानते थे।

दुःख के समय मनुष्य का स्वभाव किस तरह पिघलता है, इसका एक मधुर संस्मरण यहाँ दिये बिना मैं रह नहीं सकता। हम चीवली छावनी की तरफ जा रहे थे। यह वही क्षेत्र था, जहाँ लॉर्ड रॉबर्टस के पुत्र को प्राणघातक चोट लगी थी। लेफ्टिनेंट रॉबर्टस के शव को ले जाने का सम्मान हमारी टुकड़ी को मिला था। अगले दिन धूप तेज थी। हम कूच कर रहे थे। सब प्यासे थे। पानी पीने के लिए रास्ते में एक छोटा-सा झरना पड़ा। पहने पानी कौन पीये? मैंने सोचा कि पहले टॉमी पानी पी ले, बाद में हम पीयेंगे। पर टॉमियों में हमे देखकर तुरन्त हमसे पानी पीने लेने का आग्रह शुरू कर दिया, और इस तरह बड़ी देर तक हमारे बीच 'आप पहले, हम पीछे' का मीठा झगड़ा चलता रहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book