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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

देश-गमन


लड़ाई के काम मुक्त होने के बाद मैंने अनुभव किया कि अब मेरा काम दक्षिण अफ्रीका में नहीं, बल्कि हिन्दुस्तानी में हैं। मैंने देखा कि दक्षिण अफ्रीका में बैठा-बैठा मैं कुछ सेवा तो अवश्य कर सकूँगा, पर वहाँ मेरा मुख्य धन्धा धन कमाना ही हो जायगा।

देश का मित्रवर्ग भी देश लौट आने के लिए बराबर आग्रह करता रहता था। मुझे भी लगा कि देश जाने से मेरा उपयोग अधिक हो सकेगा। नेटाल में मि. खान और मनसुखलाल नाजर थे ही।

मैंने साथियो के सामने मुक्त होने की इच्छा प्रकट की। बड़ी कठिनाई से एक शर्त के साथ वह स्वीकृत हुई। शर्त यह कि यदि एक वर्ष के अन्दर कौम को मेरी आवश्यकता मालूम हुई, तो मुझे वापस दक्षिण अफ्रीका पहुँचना होगा। मुझे यह शर्त कड़ी लगी, पर मैं प्रेमपाश में बँधा हुआ था :

काचे रे तांतणे मने हरजीए बाँधी,
जेम ताणे तेम तेमनी रे,
मने लागी कटारी प्रेमनी।

(हरिजी ने मुझे कच्चे -- प्रेम के -- घागे से बाँध रखा हैं। वे ज्यो-ज्यो उसे खीचते हैं त्यो-त्यो मैं उनकी होती जाती हूँ। मुझे प्रेम की कटारी लगी हैं।)

मीराबाई की यह उपमा थोड़े-बहुत अंशो में मुझ पर घटित हो रही हैं। पंच भी परमेश्वर ही हैं। मित्रों की बात को मैं ठुकरा नहीं सकता था। मैंने वचन दिया और उनकी अनुमति प्राप्त की।

कहना होगा कि इस समय मेरा निकट सम्बन्ध नेटाल के साथ ही था। नेटाल के हिन्दुस्तानियो ने मुझे प्रेमामृत से नहला दिया। जगह-जगह मानपत्र समर्पण की सभाये हुई और हर जगह से कीमती भेटे मिली।

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