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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


जैसे स्वयंसेवक थे, वैसे ही प्रतिनिधि थे। उन्हें भी इतने ही दिनो की तालीम मिलती थी। वे अपने हाथ से अपना कोई भी काम न करते थे।

सब बातो में उनके हुक्म छूटते रहते थे। 'स्वयंसेवक यह लाओ, स्वयंसेवक वह लाओ' चला ही करता था।

अखा भगत (गुजरात के एक भक्तकवि। इन्होने अपने एक छप्पय में छुआछूत को 'आभडछेट अदकेरो अंग' कहकर उसका विरोध किया हैं और कहा हैं कि हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं हैं।) के 'अदकेरा अंग' 'अतिरिक्त अंग' का भी ठीक-ठीक अनुभव हुआ। छुआछूत को मानने वाले वहाँ बहुत थे। द्राविड़ी रसोई बिल्कुल अलग थी। उन प्रतिनिधियों को तो 'दृष्टिदोष' भी लगता था ! उनके लिए कॉलेज के अहाते में चटाइयो का रसोईघर बनाया गया था। उसमें घुआँ इतना रहता था कि आदमी का दम घुट जाय। खाना-पीना सब उसी के अन्दर। रसोईघर क्या था, एक तिजोरी थी। वह कहीं से भी खुला न था।

मुझे यह वर्णधर्म उलटा लगा। कांग्रेस में आने वाले प्रतिनिधि जब इतनी छुआछूत रखते हैं, तो उन्हें भेजने वाले लोग कितनी रखते होंगे? इस प्रकार का त्रैराशिक लगाने से जो उत्तर मिला, उस पर मैंने एक लम्बी साँस ली।

गंदगी की हद नहीं थी। चारो तरफ पानी ही पानी फैल रहा था। पखाने कम थे। उनकी दुर्गन्ध की याद आज भी मुझे हैरान करती हैं। मैंने एक स्वयंसेवक को यह सब दिखाया। उसने साफ इनकार करते हुए कहा, 'यह तो भंगी का काम हैं।' मैं झाड़ू माँगा। वह मेरा मुँह ताकता रहा। मैंने झाडू खोज निकाला। पाखाना साफ किया। पर यह तो मेरी अपनी सुविधा के लिए हुआ। भीड़ इतनी ज्यादा थी और पाखाने इतने कम थे कि हर बार के उपयोग के बाद उनकी सफाई होनी जरूरी थी। यह मेरी शक्ति के बाहर की बात थी। इसलिए मैंने अपने लायक सुविधा करके संतोष माना। मैंने देखा कि दूसरो को यह गंदगी जरा भी अखरती न थी।

पर बात यहीं खतम नहीं होती। रात के समय कोई-न-कोई तो कमरे के सामने वाले बरामदे में ही निबट लेते थे। सवेरे स्वयंसेवको को मैंने मैंला दिखाया। कोई साफ करने को तैयार न था। उसे साफ करने का सम्मान भी मैंने ही प्राप्त किया।

यद्यपि अब इन बातो में बहुत सुधार हो गया हैं, फिर भी अविचारी प्रतिनिधि अब तक कांग्रेस के शिविर को जहाँ-तहाँ कांग्रेस के शिविर को जहाँ-तहाँ मल त्याग करके गन्दा करते हैं और सब स्वयंसेवक उसे साफ करने के लिए तैयार नहीं होते।

मैंने देका कि अगर ऐसी गंदगी में कांग्रेस की बैठक अधिक दिनो तक जारी रहती, तो अवश्य बीमारी फैल जाती।

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