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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

लार्ड कर्जन का दरबार


कांग्रेस-अधिवेशन समाप्त हुआ, पर मुझे तो दक्षिण अफ्रीका के लिए कलकत्ते में रहकर चेम्बर ऑफ कॉमर्स इत्यादि मंड़लो से मिलना था। इसलिए मैं कलकत्ते में एक महीना ठहरा। इस बार मैंने होटल में ठहरने के बदले परिचय प्राप्त करके 'इंडिया क्लब' में ठहरने की व्यवस्था की। इस क्लब में अग्रगण्य भारतीय उतरा करते थे। इससे मेरे मन में यह लोभ था कि उनसे मेंल-जोल बढ़ाकर मैं उनमें दक्षिण अफ्रीका के काम के लिए दिलचस्पी पैदा कर सकूँगा। इस क्लब में गोखले हमेशा तो नहीं, पर कभी-कभी बिलियर्ड खेलने आया करते थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं कलकत्ते में ठहरने वाला हूँ, उन्होंने मुझे अपने साथ रहने के लिए निमंत्रित किया। मैंने उनका निमंत्रण साभार स्वीकार किया, पर मुझे अपने-आप वहाँ जाना ठीक न लगा। एक-दो दिन बाट जोहता रहा। इतने में गोखले खुद आकर मुझे अपने साथ ले गये। मेरा संकोच देखकर उन्होंने कहा, 'गाँधी, तुम्हे इस देश में रहना है। अतएव ऐसी शरम से काम नहीं चलेगा। जितने अधिक लोगों के साथ मेंल-जोल बढ़ा सको तुम्हें बढ़ाना चाहिये। मुझे तुमसे कांग्रेस का काम लेना हैं।'

गोखले के स्थान पर जाने से पहले 'इंडिया क्लब' का एक अनुभव यहाँ देता हूँ।

उन्हीं दिनो लार्ड कर्जन का दरबार हुआ। उसमें जानेवाले कोई राजामहाराजा इस क्लब में ठहरे हुए थे। क्लब में तो मैं हमेशा सुन्दर बंगाली धोती, कुर्ता और चादर की पोशाक में देखता था। आज उन्होंने पतलून, चोगा और चमकीले बूट पहने थे। यह देखकर मुझे दुःख हुआ और मैंने इस परिवर्तन का कारण पूछा।

जवाब मिला, 'हमारा दुःख हम ही जानते हैं। अपनी सम्पति और अपनी उपाधियों को सुरक्षित रखने के लिए हमें जो अपमान सहने पड़ते हैं, उन्हें आप कैसे जान सकते हैं?'

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