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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

गोखले के साथ एक महीना-2


गोखले की छायातले रहकर मैंने सारा समय घर में बैठकर नहीं बिताया।

दक्षिण अफ्रीका के अपने ईसाई मित्रों से मैंने कहा था कि मैं हिन्दुस्तान के ईसाइयों से मिलूँगा और उनकी स्थिति की जानकारी प्राप्त करूँगा। मैंने कालीचरण बैनर्जी का नाम सुना था। वे कांग्रेस के कामों में से अगुआ बनकर हाथ बँटाते थे, इसलिए मेरे मन में उनके प्रति आदर था। साधारण हिन्दुस्तानी ईसाई कांग्रेस से और हिन्दू-मुसलमानों से अलग रहा करते थे। इसलिए उनके प्रति मेरे मन में जो अविश्वास था, वह कालीचरण बैनर्जी के प्रति नहीं था। मैंने उनसे मिलने के बारे में गोखले से चर्चा की। उन्होंने कहा, 'वहाँ जाकर क्या पाओगे? वे बहुत भले आदमी हैं, पर मेरा ख्याल है कि वे तुम्हें संतोष नहीं दे सकेंगे। मैं उन्हें भलीभाँति जानता हूँ। फिर भी तुम्हें जाना हो तो शौक से जाओ।'

मैंने समय माँगा। उन्होंने तुरन्त समय दिया और मैं गया। उनके घर उनकी धर्मपत्नी मृत्युशय्या पर पड़ी थी। घर सादा था। कांग्रेस में उनको कोट-पतलून में देखा था। पर घर में उन्हें बंगाली धोती और कुर्ता पहने देखा। यह सादगी मुझे पसन्द आयी। उन दिनों मैं स्वय पारसी कोट-पतलून पहनता था, फिर भी मुझे उनकी यह पोशाक और सादगी बहुत पसन्द पड़ी। मैंने उनका समय न गँवाते हुए अपनी उलझने पेश की।

उन्होंने मुझसे पूछा, 'आप मानते हैं कि हम अपने साथ पाप लेकर पैदा होते हैं?'

मैंने कहा, 'जी हाँ।'

'तो इस मूल पाप का निवारण हिन्दू धर्म में नहीं हैं, जब कि ईसाई धर्म में हैं। ' यो कहकर वे बोले, 'पाप का बदला मौत हैं। बाईबल कहती हैं कि इस मौत से बचने का मार्ग ईसा की शरण हैं।'

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