लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

अंग्रेजों से परिचय


एक बार जोहानिस्बर्ग में मेरे पास चार कारकून हो गये थे। मैं नहीं कह सकता कि उन्हें कारकून माँनू या बेटे। किन्तु इससे मेरा काम न चला। टाइपिंग के बिना मेरा काम चल ही नहीं सकता था। टाइपिंग का जो थोड़ा सा ज्ञान था सो मुझे ही था। इन चार नौजवानों में से दो को मैंने टाइपिंग सिखाया, किन्तु अंग्रेजी का ज्ञान कम होने से उनका टाइपिंग कभी अच्छा न हो सका। फिर, उन्हीं में से मुझे हिसाबनवीस भी तैयार करने थे। नेटाल से अपनी इच्छानुसार मैं किसी को बुला न सकता था, क्योंकि बिना परवाने के कोई हिन्दुस्तानी दाखिल नहीं हो पाता था। और अपनी सुविधा के लिए मैं अधिकारियों से मेंहरबानी की भीख माँगने को तैयार न था।

मैं परेशानी में पड़ गया। काम इतना बढ़ गया था कि कितनी ही मेंहनत क्यों न की जाये, मेरे लिए यह सम्भव नहीं रहा कि वकालत और सार्वजनिक सेवा दोनों को ठीक से कर सकूँ।

मुहर्रिरी के लिए अंग्रेज स्त्री-पुरुषो के मिलने पर मैं उन्हें न रखूँ,ऐसी कोई बात नहीं थी। पर मुझे यह डर था कि 'काले' आदमी के यहाँ क्या गोरे नौकरी करेंगे? लेकिन मैंने प्रयत्न करने का निश्चय किया। टाइप राइटिंग एजेंट से मेरी थोडी पहचान थी। मैं उसके पास गया और उससे कहा कि जिसे काले आदमी के अधीन नौकरी करने में अड़चल न हो, ऐसे टाइप राइटिंग करने वाले गोरे भाई या बहन को वह मेरे लिए खोज दे। दक्षिण अफ्रीका में शॉर्टहैंड लिखने और टाइप करने का काम करने वाली अधिकतर बहने ही होती हैं। इस एजेंट ने मुझे वचन दिया कि ऐसा आदमी प्राप्त करने का वह प्रयत्न करेगा। उसे मिस डिक नामक एक स्कॉच कुमारिका मिल गयी। यह महिला हाल ही स्कॉटलैंड से आयी थी। उसे प्रामाणिक नौकरी कहीँ भी करने में कोई आपत्ति न थी। उसे तत्काल काम पर लगना था। उक्त एजेंट इस बहन को मेरे पास भेज दिया। उसे देखते ही मेरी आँखे उस पर टिक गयी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book