लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


'यदि यही बात हैं तो हम लाचार है। आँसू बहाने का को कारण नहीं हैं। अब भी कोई प्रयत्न हो सकता हो तो हम करके देखे। पर आपके उस हाथ चक्र का क्या हुआ ? ' यह कहकर मैंने उन्हें आश्वासन दिया।

वेस्ट बोले, 'उसे चलाने के लिए हमारे पास आदमी कहाँ है? हम जितने लोग यहाँ है उतनो से वह चल नहीं सकता, उसे चलाने के लिए बारी बारी से चार चार आदमियों की आवश्यकता है। हम सब तो थक चुके है।'

बढ़इयो का काम अभी पूरा नहीं हुआ था। इससे बढ़ई अभी गये नहीं थे। छापाखाने में ही सोये थे। उनकी ओर इशारा करके मैंने कहा, 'पर ये सब बढ़ई तो है न? इनका उपयोग क्यों न किया जाय? और आज की रात हम सब अखंड जागरण करे। मेरे विचार में इतना कर्तव्य बाकी रह जाता है।'

'बढ़इयों को जगाने और उनकी मदद माँगने की मेरी हिम्मत नहीं होती, और हमारे थके हुए आदमियो से कैसे कहा जाये?'

मैंने कहा, 'यह मेरा काम है।'

'तो संभव है, हम अपना काम समय पर पूरा कर सके।'

मैंने बढ़इयों को जगाया और उनकी मदद माँगी। मुझे उन्हे मनाना नहीं पड़ा। उन्होंने कहा, 'यदि ऐसे समय भी हम काम न आये, तो हम मनुष्य कैसे? आप आराम कीजिये, हम चक्र चला लेंगे। हमे इसमे मेंहनत नहीं मालूम होगी।'

छापाखाने के लोग तो तैयार थे ही।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book