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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


आज तक न्यूनाधि ही सही, परन्तु जाने पहचाने गोरे पुरूष मेरे साथ रहे थे। अब एक अपरिचित अंग्रेज महिला ने कुटुम्ब में प्रवेश किया। स्वयं मुझे तो याद नहीं पड़ता कि इस कारण परिवार में कभी कोई कलह हुआ हो। किन्तु जहाँ अनेक जातियों के और अनेक स्वभावों के हिन्दुस्तानी आते जाते थे और जहाँ मेरी पत्नी को अभी तक ऐसे अनुभव कम ही थे, वहाँ दोनों के बीच कभी उद्वेग के अवसर जितने आते है, उनसे अधिक अवसर तो इस विजातीय परिवाक में नहीं ही आये। बल्कि जिनका मुझे स्मरण है वे अवसर भी नगण्य ही कहे जायेगे। सजातीय और विजातीय की भावनाये हमारे मन की तरंगे है। वास्तव में हम सब एक परिवार ही है।

वेस्ट का ब्याह भी यहीं सम्पन्न कर लूँ। जीवन के इस काल तक ब्रह्मचर्य विषयक मेरे विचार परिपक्व नहीं हुए थे। इसलिए कुँवारे मित्रों का विवाह करा देना मेरा धंधा बन गया था। जब वेस्ट के लिए अपने माता पिता के पास जाने का समय आया तो मैंने उन्हें सलाह दी जहाँ तक बन सके वे अपना ब्याह करके ही लौटे। फीनिक्स हम सब का घर बन गया था और हम सब अपने को किसान मान बैठे थे, इस कारण विवाह अथवा वंशवृद्धि हमारे लिए भय का विषय न था।

वेस्ट लेस्टर की एक सुन्दर कुमारिका को ब्याह कर लाये। इस बहन का परिवार लेस्टर में जूतो का बड़ा व्यवसाय चलता था उसमें काम करता था। मिसेज वेस्ट ने भी थोड़ा समय जूतो के कारखाने में बिताया था। उसे मैंने 'सुन्दर' कहा है, क्योंकि मैं उसके गुणो को पुजारी हूँ और सच्चा सौन्दर्य तो गुण में ही होता है। वेस्ट अपनी सास को भी अपने साथ लाये थे। वह भली बुढिय़ा अभी जीवित है। अपने उद्यम और हँसमुख स्वभाव से वह हम सबको सदा शरमिन्दा किया करती थी।

जिस तरह मैंने इन गोरे मित्रों के ब्याह करवाये, उसी तरह मैंने हिन्दुस्तानी मित्रों को प्रोत्साहित किया कि वे अपने परिवारो को बुला ले। इसके कारण फीनिक्स एक छोटा सा गाँव बन गया और वहाँ पाँच सात भारतीय परिवार बस कर बढ़ने लगे।

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