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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इन बालकों की अंग्रेजी शिक्षा के विषय में मेरे और पोलाक के बीच कितनी ही बार गरमागरम बहस हुई है। मैंने शुरू से ही यह माना है कि जो हिन्दुस्तानी माता पिता अपने बालकों को बचपन से ही अंग्रेजी बोलनेवाले बना देते है, वे उनके और देश के साथ द्रोह करते है। मैंने यह भी माना है कि इससे बालक अपने देश की धार्मिक और सामाजिक विरासत से वंचित रहता है और उस हद तक वह देश की तथा संसार की सेवा के लिए कम योग्य बनता है। अपने इस विश्वास के कारण मैं हमेशा जानबूझ कर बच्चो के साथ गुजराती में ही बातचीत करता था। पोलाक को यह अच्छा नहीं लगता था। उनकी दलील यह थी कि मैं बच्चो के भविष्य को बिगाड़ रहा हूँ। वे मुझे आग्रह पूर्वक समझाया करते थे कि यदि बालक अंग्रेजी के समान व्यापक भाषा को सीख ले, तो संसार में चल रही जीवन की होड़ में वे एक मंजिल को सहज ही पार कर सकते है। उनकी यह दलील मेरे गले न उतरती थी। अब मुझे यह याद नहीं है कि अन्त में मेरे उत्तर से उन्हें संतोष हुआ था या मेरा हठ देखकर उन्होंने शान्ति धारण कर ली थी। इस संवाद को लगभग बीस वर्ष हो चुके है, फिर भी उस समय के मेरे ये विचार आज के अनुभव से अधिक ढृढ हुए है, और यद्यपि मेरे पुत्र अक्षर ज्ञान में कच्चे रह गये है, फिर भी मातृभाषा का जो साधारण ज्ञान उन्हें आसानी से मिला है, उससे उन्हें और देश को लाभ ही हुआ है और इस समय वे देश में परदेशी जैसे नहीं बन गये है। वे द्विभाषी तो सहज ही हो गये, क्योंकि विशाल अंग्रेज मित्र मंडली के सम्पर्क में आने से और जहाँ विशेष रुप से अंग्रेजी बोली जाती है ऐसे देश में रहने से वे अंग्रेजी भाषा बोलने और उसे साधारणतः लिखने लग गये।

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